मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

देवसेना का गीत : जयशंकर प्रसाद

                               देवसेना का गीत 



देवसेना का गीत छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद जी के नाटक 'स्कंदगुप्त' से लिया गया है , इसमें देवसेना की वेदना का मार्मिक चित्रण किया गया है। देवसेना जो मालवा की राजकुमारी है उसका पूरा परिवार हूणों के हमले में  वीरगति को प्राप्त होता है। वह रूपवती / सुंदर थी लोग उसे तृष्णा भरी नजरों से देखते थे , लोग उससे विवाह करना चाहते थे , किंतु वह स्कंदगुप्त से प्यार करती थी , किंतु स्कंदगुप्त धन कुबेर की कन्या विजया से प्रेम करता था। जिसके कारण वह देवसेना के प्रणय - निवेदन को ठुकरा देता है। परिवार सभी सदस्यों के मारे जाने के उपरांत उसका कोई सहारा नहीं रहता , जिसके कारण वह इस जीवन में अकेली हो जाती है। जीवन - यापन के लिए जीवन की संध्या बेला में भीख मांगकर जीवनयापन करती है और अपने जीवन में व्यतीत क्षणों को याद कर कर दुखी होती है।




आह ! वेदना मिली विदाई !

मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,

मधुकरियो की भीख लुटाई।


छलछल थे संध्या के श्रमकण

आंसू - से गिरते थे प्रतिक्षण।

मेरी यात्रा पर लेती थी-

निरवता अनंत अंगड़ाई।


शब्दार्थ :

वेदना - पीड़ा। भ्रमवश - भ्रम के कारण। मधुकरियो - पके हुए अन्न।  श्रमकण - मेहनत से  उत्पन्न पसीना।  नीरवता - खामोशी। अनंत - अंतहीन।


प्रसंग :

प्रस्तुत पंक्तियां देवसेना का गीत जो प्रसाद जी के नाटक स्कंदगुप्त  का अंश है।   हूणों  के हमले से अपने भाई और मालवा के राजा बंधुवर्मा तथा परिवार के सभी लोगों के वीरगति पाने और अपने प्रेम स्कंधगुप्त द्वारा ठुकराया जाने से टूटी देवसेना जीवन के आखिरी मोड़ पर आकर अपने अनुभवों में अर्जित दर्द भरे क्षण  का स्मरण करके यह गीत गा रही है इसी दर्द को कवि देवसेना के मुख से गा रहा है।


व्याख्या :

कवि देवसेना के मुख से अपने जीवन के अनुभव को व्यक्त करना चाह रहा है जिसमें वह छोटी छोटी बातों को भी शामिल करना चाहता है। आज मेरे दर्द को मुझसे विदाई मिल गई जिस भ्रम में रहकर मैंने जीवन भर आशाओं और कामनाओं कोई इकट्ठा  किया उसे मैंने भीख में दे दिया। मेरी दर्द भरी शामें आंसू में भरी हुई और मेरा जीवन गहरे वीरान जंगल में रहा। देवसेना अपने बीते हुए जीवन पर दृष्टि डालते हुए अपने अनुभवों और पीड़ा के पलों को याद कर रही है जिसमें उसकी जिंदगी के इस मोड़ पर अर्थात जीवन की आखिरी क्षणों में वह अपने जवानी में किए गए कार्यों को याद करते हुए अपना दुख प्रकट कर रही है। अपनी जवानी में किए गए प्यार , त्याग ,तपस्या  को वह गलती से किए गए कार्यों की श्रेणी में बताकर उस समय की गई अपनी नादानियों पर पछतावा कर रही है। जिसके कारण उसकी आंखों से आंसू बह निकले हैं।


विशेष :

१ देवसेना के जीवन का संघर्ष तथा उसके  मनोदशा का चित्रण आंसू से गिरते थे।

२ 'प्रतिक्षण' में उपमा अलंकार

३ 'छलछल'  में पुनरुक्ति अलंकार

४ मेरी यात्रा पर लेती थी नीरवता अनंत अंगड़ाई में 'मानवीकरण' हुआ है




श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,

गहन - विपिन की तरु - छाया में,

पथिक उंनींदी श्रुति में किसने-

यह विहाग की तान उठाई।


लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,

रही बचाए फिरती कबकी।

मेरी आशा आह ! बावली,

तूने खो दी सकल कमाई।


शब्दार्थ :

श्रमित - श्रम से युक्त। मधुमाया - सुख की माया। गहन - विपिन - घने जंगल। पथिक - राही।  उंनींदी - अर्ध निंद्रा। विहाग - राग। सतृष्ण - तृष्णा से युक्त दृष्टि।


व्याख्या : देवसेना कहती है कि परिश्रम से थके हुए सपने के मधुर सम्मोहन में घने वन के बीच पेड़ की छाया में विश्राम करते हुए यात्री की नींद से भरी हुई सुनने की अलसाई क्रिया में यह किसने राग बिहाग की स्वर लहरी छेड़ दी है। भाव यह है कि जीवन भर संघर्ष रत रहती हुई देवसेना  दिल से नासिक सुख  की आकांक्षा लिए मीठे सपने देखती रही।  जब उसके सपने पूरे ना हो सके तो वह थक कर निराश होकर सुख की आकांक्षा से विदाई लेती हुई उससे मुक्त होना चाहती है। ऐसी स्थिति में भी करुणा भरे गीत की तरह वियोग का दुख उसके हृदय को कचोट रहा है। देवसेना कहती है की युवावस्था में तो सब की तृष्णा भरी अर्थात प्यासी नजरें मेरे ऊपर फिरती रहती थी। परंतु यह मेरी आशा पगली तूने मेरी सारी कमाई हुई पूंजी ही खो दी। देवसेना के कहने का तात्पर्य यह है कि जब अपने आसपास उसके सब की प्यासी नजरें दिखती थी तब वह स्कंदगुप्त प्रेम में पड़ी हुई स्वयं को उस से बचाने की कोशिश करती रहती थी। परंतु अपनी पागल आशा के कारण वह अपने जीवन की पूंजी अपनी सारी कमाई को बचा न सकी अर्थात उसे अपने प्रेम के बदले और सुख नहीं मिल सका।


चढ़कर मेरे जीवन - रथ पर,

प्रलय चल रहा अपने पथ पर।

मैंने  निज दुर्बल पद - बल पर,

उससे हारी - होड़ लगाई।


लौटा लो यह अपनी थाती ,

मेरी करुणा हा - हा खाती।

विश्व ! न सँभलेगा यह मुझसे,

इससे मन की लाज गंवाई।



शब्दार्थ :

निज - अपना। प्रलय - आपदा। थाती - धरोहर /प्यार /अमानत। सतृष्ण - तृष्णा संयुक्त।


व्याख्या :

देवसेना कहती है कि मेरे जीवन रूपी रथ पर सवार होकर प्रलय अपने रास्ते पर चला जा रहा है। अपने दुर्बल पैरों के बल पर उस प्रलय से ऐसी प्रतिस्पर्धा कर रही हूं जिसमें मेरी हार सुनिश्चित है। देवसेना कहती है कि यह संसार तुम अपने धरोहर को अमानत को वापस ले लो , मेरी करुणा हाहाकार कर रही है , यह मुझसे नहीं समझ पाएगा इसी कारण मैंने अपने मन की लज्जा को गवा दिया था। आज यह है कि देवसेना जीवन के लिए संघर्ष कर रही है। पहले स्वयं देवसेना के जीवन रथ पर सवार है अब तो वह अपने दुर्बल शरीर से हारने की अनिश्चितता के बावजूद प्रलय से लोहा लेते रहती है। उसका पूरा जीवन ही दुख में है वह करुणा के स्वर में कहती है कि अंतिम समय में हृदय की वेदना अब उससे संभल नहीं पाएगी इसी कारण उसे मन की लाज गवानी पड़ रही है।


विशेष :

१ जीवन रथ में 'रूपक' अलंकार है।

२ 'पथ पर हारी होर' , ' लौटा लो' में अनुप्रास अलंकार है

३ प्रलय चल रहा अपने पथ पर में प्रलय का मानवीकरण हुआ है

४ माधुर्य गुण है व्यंजना शब्द शक्ति है।


रविवार, 19 अप्रैल 2020

जयशंकर प्रसाद

 

जयशंकर प्रसाद



जयशंकर प्रसाद का जन्म बनारस के एक धनी परिवार में हुआ था । उनके दादा जी सुँघनी साहू बनारस के प्रसिद्ध व्यवसायी थे । बचपन में ही जयशंकर प्रसाद की माता जी की मृत्यु हो गई । उनकी आरंभिक पढ़ाई क्विंस कॉलेज वाराणसी में हुई ।

जयशंकर प्रसाद ने हिंदी की अनेक विधाओं में रचनाएँ कीं । कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास इनमें से मुख्य विधाएँ हैं ।

जयशंकर प्रसाद छायावाद युग के महत्त्वपूर्ण कवि हैं । इनकी कविताओं में बहुत मधुरता है । कामायनी इनकी सबसे प्रसिद्ध काव्य-पुस्तक है।

जयशंकर प्रसाद की 48 वर्ष की उम्र में क्षय ( टी. बी.) रोग के कारण हुई । इनकी मृत्यु की तारीख 14 जनवरी 1937 है ।

जयशंकर प्रसाद के काव्य की विशेषताएँ :

·        जयशंकर प्रसाद प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं ।

·        उनकी कविताओं  में मधुरता है ।

·        इन कविताओं में कल्पना की अधिकता है ।

·        प्रसाद ने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विषयों पर कविताएँ लिखी हैं ।

·        उनके पूरे साहित्य में भारत के सांस्कृतिक गौरव का गान है ।

·        उन्होंने  प्रेम और त्याग तथा समर्पण को सबसे ऊँचा मानवीय मूल्य माना है ।

·        आँसू आधुनिक हिंदी कविता में विरह काव्य का सुंदर उदाहरण है ।

·        कामायनी आधुनिक हिंदी कविता का  सबसे महत्त्वपूर्ण महाकाव्य है ।

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

हिंदी काव्य : एक रेखांकन

 

हिंदी साहित्य का आरंभ

हिंदी साहित्य की शुरुआत की एक निश्चित तिथि नहीं बताई जा सकती, लेकिन इसका आरंभ सन् 1000 ई. के आसपास मानी जा सकती  है । तब से लेकर अब तक लगभग एक हजार साल में हिंदी का साहित्य लगातार आगे बढ़ता रहा है । इसमें कई तरह के बदलाव आये । इन बदलावों के आधार पर हिंदी साहित्य को अलग-अलग कालों में बाँटा गया है । इन कालों की सही समय-सीमा और नामकरण को लेकर विद्वानों अलग-अलग विचार हैं । इनमें आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल-विभाजन अधिक मान्य है ‌‌। उनके अनुसार—

1.      आदिकाल (वीरगाथाकाल) : संवत् 1050 से 1375 तक  ( सन् 993 ई. से  सन्1318 ई. )

2.      पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल)  : संवत् 1375 से संवत् 1700 तक ( सन् 1318 ई. से  सन्1643 ई. )

3.      उत्तरमध्यकाल ( रीतिकाल) : संवत् 1700 से संवत् 1900 तक ( सन् 1643 ई. से  सन् 1843 ई. )

4.      आधुनिक काल ( गद्यकाल) : संवत् 1900 से अब तक ( सन् 1843 ई. से  अबतक)

आदिकाल (वीरगाथाकाल )

संवत् 1050 से 1375

आदिकाल हिंदी भाषा में साहित्य लिखने की शुरुआत का समय है । हिंदी भाषा से पहले साहित्य की भाषा अपभ्रंश थी। इसमें आठवीं शताब्दी के आस पास से साहित्य-रचनाएँ मिलने लगती हैं । चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसे पुरानी हिंदी कहा है । लेकिन हिंदी साहित्य के आदिकाल का वास्तविक समय संवत् 1050 से 1375 तक माना जाता है। इस समय तीन तरह के साहित्य लिखे गये –

1.      धार्मिक काव्य

2.      वीरगाथा काव्य

3.      स्वतंत्र काव्य

धार्मिक काव्य – इस समय भारत में कई तरह के धार्मिक विचार थे । इनमें से सिद्ध, नाथ और जैन तीन मुख्य थे। आदिकालीन हिंदी में इन तीनों से जुड़ी धार्मिक  रचनाएँ  मिलती हैं । इनमें साहित्य की जगह धार्मिक विचार अधिक प्रभावी  हैं । इन कवियों ने अपनी कविताओं में अपने-अपने धर्मों की शिक्षा दी है। ये धार्मिक विचार की कविताएँ हैं। ये विचार दोहा, चरित काव्य और चार्यापदों में रचे गए हैं । इनमें से मुख्य कवि हैं—

धार्मिक मत

कवि

काव्य

सिद्ध

सरहपा

दोहाकोश

जैन

स्वयंभू

मेरुतुंग

हेमचंद्र

पउम चरिउ (राम-कथा)

प्रबंध चिंतामणि

प्राकृत व्याकरण

नाथ

गोरख नाथ

गोरखबानी

 

जैन काव्य की विशेषताएँ :

1.      जैन काव्य जैन धर्म से प्रभावित है ।

2.      जैन धर्म के महापुरुषों के जीवन को विषय बनाकर चिरित काव्य लिखे गए; जैसे- पउम चरिउ, जसहर चरिउ, करकंडु चरिउ,भविसयत कहा आदि ।

3.      जैन कवियों ने व्याकरण-ग्रंथ भी लिखे ; जैसे- प्राकृत व्याकरण, प्रबंधचिंतामणि, सिद्धहेम शब्दानुशासन आदि ।

4.      कड़वक बंध रचनाएँ और चौपई छंद जैन कवियों की देन है ।

5.      हिंदी का पहला बारहमासा वर्णन जैन साहित्य में मिलता है ।

वीरगाथा काव्य– इस समय भारत में एक केंद्रीय सत्ता की कमी थी। देश कई छोटे-छोटे राज्यों में बँटा था और प्रत्येक राजा दूसरे राजा से राज्य छीनना चाह रहा था और अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था। इसलिए वे आपस में लड़ रहे थे। इन राजाओं के राज्य में रहने वाले कवियों ने अपने राजाओं की वीरता का वर्णन  किया है । इस लिए इन्हें वीरगाथा काव्य कहा जाता है। इन कविताओं का विषय लड़ाइयों का वर्णन है। चंदबरदाई का पृथ्वीराज रासो और जगनिक की परमाल रासो इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध है।

स्वतंत्र काव्य – जिन कवियों ने धार्मिक काव्य और वीरगाथा काव्य नहीं लिखे । उनकी कविताएँ इन दोनों प्रकार के काव्यों से अलग हैं , उन्हें स्वतंत्र कवि कहा जा सकता है; जैसे विद्यापति और अमीर खुसरो 

1.      विद्यापति (14 वीं शताब्दी) — इनके तीन प्रसिद्ध काव्य कीर्तिलता’, कीर्तिपताका और पदावली हैं। कीर्तिलता और कीर्ति पताका का संबंध राजा कीर्ति सिंह से है। विद्यापति उन्हीं के यहाँ रहते थे। पदावली में राधा और कृष्ण के प्रेम का वर्णन है। इसमें उन दोनों का प्रेम एक सामान्य युवक और युवती के प्रेम जैसा है। विद्यापति के इस काव्य का सबसे अधिक महत्त्व है।

2.      अमीर खुसरो (14 वीं शताब्दी) —  खुसरो फारसी के कवि थे। उन्होंने हिंदी में भी रचनाएँ कीं। उनकी पहेलियाँ, मुकरियाँ, दो सुखने प्रसिद्ध हैं। खुसरो  की रचनाओं की भाषा आधुनिक काल की हिंदी के करीब है। इसलिए इनका ऐतिहारिक महत्त्व है।

3.      अद्दहमाण / अब्दुल रहमान (13वीं शताब्दी)- संदेश रासक (शृंगार काव्य)

4.      रोडा- राउड बेलि (शृंगार काव्य)

5.      लक्षमीधर - प्राकृत पैंगलम्

आदिकाल की सामान्य विशेषताएँ :

1.      इस काल में वीर-काव्य लिखे गए।

2.      इस काल के कवि राजाओं के दरबारी कवि थे और उन्होंने अपने राजाओं की प्रशस्तिमें कविताएँ लिखीं।

3.      आदिकाल में वीर के साथ-साथ कुछ शृंगार (प्रेम) की रचनाएँ की भी मिलती हैं; जैसे-  नरपति नाल्ह की बीसलदेव रासो  और विद्यापति की पदावली

4.      जैन और सिद्ध कवियों ने अपने धार्मिक विचार के प्रचार के लिए साहित्य का आधार बनाया है। जसहर चरिउ’, रिठ्ठणेमि चारिउ आदि ।

5.      इन रचनाओं की भाषा अपभ्रंश मिली-जुली हिंदी (डिंगल- पिंगल और अवहट्ट) है।

6.       खुसरो की रचनाओं तथा उक्तिव्यक्ति प्रकरण से आधुनिक हिंदी भाषा का पूर्वानुमान मिलने लगता है।

7.      चरित, दोहा और पद— जैसे नए काव्य-रूप का प्रयोग किया, जो बाद में अधिक लोकप्रिय हुए ।

शनिवार, 11 अप्रैल 2020

पुल्लिंग (आकारांत से भिन्न) संज्ञा शब्दों का रूप परिवर्तन

II. आकारांत से  भिन्न अन्य पुल्लिंग संज्ञा शब्द

आकारांत शब्दों से अलग जितने भी पुल्लिंग शब्द हैं, उनकी रूप-रचना एक तरह की होती है । घरगुरुपक्षीचाकू आदि ऐसे ही शब्द हैं । इनकी रूप-रचना आकारांत शब्दों से अलग होती है । यह पुल्लिंग संज्ञा शब्दों की रूप-रचना का दूसरा प्रकार है ।
 विभक्ति
एकबचन
            बहुवचन
उदाहरण
मूल (परसर्ग रहित)
घरगुरुपक्षीचाकू
घरगुरुपक्षीचाकू
घर जाओ 
दो पक्षी उड़ रहे हैं 
तिर्यक् (परसर्ग सहित)
घरगुरुपक्षीचाकू
घरोंगुरुओं,पक्षियोंचाकूओं
इस घर में कोई नहीं है 
इन घरों में कोई नहीं है 







अभ्यास :
·       खाली जगह पर सामने लिखे गए शब्दों के सही रूप भरिए । 
o         परसर्ग के बिना :
Ø एक वचन
1.      …… पढ़ रहा है ।                                                  (छात्र)
2.      .......... उड़ रहा है ।                                                (पक्षी)
3.      ........... तेज है ।                                                    (चाकू)
4.      .......... शिष्य को पढ़ा रहा है ।                                  (गुरु)
5.      ........... कविता लिख रहा है ।                                  ( कवि)
6.      छात्र ....... जा रहा है ।                                             (विद्यालय)
7.      ....... खड़ा है ।                                                       (पेड़)
8.      .......... चल रहा है ।                                               (हाथी)
9.      ........... कपड़े धोता है ।                                          (धोबी)
10.   .......... पेड़ पर खेल रहा है।                                     (बंदर)
11.  ............ कक्षा में बैठा है ।                                       (विद्यार्थी)
Ø बहुवचन:
1.      …… पढ़ रहे हैं ।                                                   (छात्र)
2.      .......... उड़ रहे हैं ।                                                 (पक्षी)
3.      ये........... तेज हैं।                                                   (चाकू)
4.      .......... शिष्य को पढ़ा रहे हैं ।                                   (गुरु)
5.      यहाँ दो ........... हैं ।                                               (कवि)
6.      सभी ....... खुल गए हैं।                                            (विद्यालय)
7.      ....... खड़े हैं ।                                                       (पेड़)
8.      .......... चल रहे हैं ।                                                (हाथी)
9.      ........... कपड़े धोते हैं ।                                           (धोबी)
10.   .......... पेड़ पर खेल रहे हैं ।                                     (बंदर)
11.  ............ कक्षा में बैठे हैं ।                                        (विद्यार्थी)

o   परसर्ग के साथ :
Ø एक वचन
1.      …… ने किताब पढ़ी।                                              (छात्र)
2.      .......... ने दाना खाया ।                                             (पक्षी)
3.      वह........... से फल काटता है ।                                   (चाकू)
4.      ..........ने शिष्य को पाठ पढ़ाया।                                 (गुरु)
5.      ........... ने कविता सुनाई ।                                        (कवि)
6.      ....... में छात्र पढ़ रहे है ।                                           (विद्यालय)
7.      ....... पर चिड़िया है ।                                               (पेड़)
8.      .......... ने पानी पिया ।                                              (हाथी)
9.      ........... को कपड़े दो ।                                             (धोबी)
10.   .......... के बच्चे खेल रहे हैं ।                                    (बंदर)
11.  ..........ने किताब पढ़ी ।                                            (विद्यार्थी)
Ø बहुवचन:
1.      …… ने किताब पढ़ी।                                           (छात्र)
2.      .......... ने दाना खाया ।                                          (पक्षी)
3.      यह ........... की दुकान है ।                                     (चाकू)
4.      ..........ने शिष्यों को शिक्षा दी ।                               (गुरु)
5.      ...........ने कविताएँ सुनाईं ।                                    (कवि)
6.      ....... में छात्र पढ़ते हैं ।                                           (विद्यालय)
7.      ....... पर पक्षी हैं ।                                                 (पेड़)
8.      ..........ने पानी पिया ।                                            (हाथी)
9.      ...........को कपड़े दो ।                                           (धोबी)
10.   ..........के बच्चे खेल रहे हैं ।                                  (बंदर)
11.  ..........ने किताबें पढ़ी ।                                         (विद्यार्थी)
आकारांत से भिन्न अन्य पुल्लिंग शब्द : भाई, मनुष्य, पुत्र, पति, देश, विदेश, राष्ट्र, प्रदेश, शहर, नगर, गाँव, वर्ष, दिन, आलू, डाकू, नौकर, शेर, ऊंट, साँप, नायक, पाठक, लेखक आदि शब्दों के रूप-परिवर्तन लिखिए ।