शनिवार, 5 सितंबर 2020

निर्गुण भक्ति

 

निर्गुण भक्ति की विशेषताएँ :

      निर्गुण कवियों ने निर्गुण ब्रह्म की उपासना की।

      उन्होंने अवतारवाद को अस्वीकार कर दिया।

      निर्गुण कवि मूर्ति-पूजा का विरोध करते थे।

      ब्रह्म (ईश्वर/भगवान) को प्रत्येक मनुष्य के भीतर माना।

      ज्ञान और प्रेम को ब्रह्म तक पहुँचने का रास्ता माना।  

      इन्होंने गुरु को महत्त्व दिया।

       सभी मनुष्यों में समानता को महत्व दिया।

      निर्गुण भक्ति की दो शाखाएँ थीं

क.    ज्ञानाश्रयी/ज्ञानमार्गी

ख.    प्रेमाश्रयी/प्रेममार्गी

क.    ज्ञानाश्रयी/ज्ञानमार्गी :

1.      ज्ञानाश्रयी भक्ति काव्य को संतकाव्य भी कहते हैं।

2.      इसमें ज्ञान और योग (साधना) के द्वारा ब्रह्म की उपासना पर बल दिया गया है।

3.      शंकराचार्य के अद्वैतवाद और इस्लाम के एकेश्वरवाद का प्रभाव।

4.      सिद्धों और नाथों की साधना का प्रभाव।

5.      बाहरी आचारमूर्ति-पूजा, नाम-जप, तीर्थाटन आदि का विरोध।

6.      हिंदी की कई बोलियों से मिली-जुली भाषा का प्रयोग।

7.      जाति-पाँति, ऊँच-नीच का विरोध।

8.      प्रमुख कवि- कबीर, नानक, दादू, रैदास आदि।

ख.   प्रेमाश्रयी/प्रेममार्गी :

1.      इसे सूफी कविता भी कहते हैं।

2.      ये कवि ईरानी सूफी दर्शन से प्रभावित थे।

3.      इन्होंने प्रेम को ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता माना।

4.      सूफी कविता में ईश्वर को प्रेयसी और जीव(मनुष्य) को प्रेमी माना गया है।

5.      पूरी दुनिया उसी प्रेयसी के रूप का प्रतिविंब है।

6.       भारतीय लोक-कथाओं को आधार बनाकर प्रबंध काव्य की रचना।

7.       प्रमुख कविजायसी, कुतुबन, मंझन, उस्मान आदि।