गुरुवार, 19 नवंबर 2020

महादेवी वर्मा


महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले में हुआ था । उनके जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद में बीता था । वे प्रयाग महिला विद्यापीठ में अध्यापिका थीं। उनका विवाह बचपन में ही हो गया था, लेकिन वे जीवन-भर अविवाहित की तरह रहीं । माहदेवी वर्मा साहित्यकार के साथ-साथ कुशल चित्रकार भी थीं । वे संगीत में भी निपुण थीं । उन्होंने अनेक रचाओं के अनुवाद भी किए हैं ।

महादेवी  वर्मा छायावाद की महत्त्वपूर्ण कवयित्री थीं । उन्होंने छायावाद युग में कविताएँ लिखी हैं ।  प्रकृति के प्रति प्रेम और कल्पना छायावादी कविता की विशेषता है ।  यह विशेषता जयशंकर प्रसाद, निराला और पंत तीनों कवियों में है । तीनों ही प्रकृति की सुंदरता पर मोहित हैं ।  उनका प्रक्रिति से प्रेम कभी-कभी रहस्यवाद तक पहुँच जाता है । वे प्रकृति में ब्रह्म (ईश्वर) का आभास (अनुभव) पाने लगते हैं। इसलिए उनके  प्रकृति–प्रेम की कविताएँ रहस्यवादी हो जाती हैं । यह रहस्यवाद उनकी कविता की एक पहचान है । महादेवी वर्मा की कविता का मुख्य विषय रहस्यवाद है । वे इस प्रकृति में अज्ञात शक्ति (ईश्वर) की कल्पना करती हैं । उनकी कवितओं में प्रकृति की क्रियाओं को उसी का संदेश सुना गया है ।

महादेवी वर्मा ने अप्रत्यक्ष सत्ता से प्रेम की कविताएँ लिखीं । उनका प्रेमी इस दुनिया से दूर कहीं कहीं इस प्रकृति  के उसपार है । उहोंने अपनी कविताओं में इस विरह को ही विषय बनाया । उनकी कविताएँ प्रेम की पीड़ा (दुःख) की कविताएँ हैं । इसलिए उनपर बुद्ध के दुःखवाद प्रभाव माना जाता है । महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीरा कहा गया है ।

महादेवी वर्मा  ने गद्य  में भी रचनाएँ कीं । उनके संस्मरण और रेखाचित्र बहुत प्रसिद्ध  हैं ।  उनके गद्य-लेखन में उनकी स्त्री-चेतना दिखाई पड़ती है । उन्होंने अपने जीवन में भी स्त्री-शिक्षा और स्त्री-शिक्षा के लिए काम किए ।

महादेवी वर्मा को उनके काव्यसंग्रह यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया । यह भारतीय साहित्य का सबसे पुरस्कार है ।

 

बुधवार, 18 नवंबर 2020

सगुण भक्ति

 सगुण भक्त कवि वैष्णव थे। इन्होंने विष्णु के अवतारों की उपासना की । इनकी भक्ति का आधार अवतारवाद है । सगुण भक्तों ने ब्रह्म की उपासना उनके अवतारों के रूप में की, जैसे- राम और कृष्ण । इन भक्तों ने ईश्वर से प्रिय, सखा और दास भाव की भक्ति की । भक्त कवियों ने प्रेम को एक व्यापक रूप दिया । इनहोंने प्रेम को सबसे बड़ा मानवीय मूल्य माना है । सगुण भक्त कवियों ने अपना साहित्य मुख्य रूप से ब्रज और अवधी बोलियों में लिखा । रामचरित मानस सूरसागर आदि इन कवियों की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं।

सगुण भक्ति के दो प्रकार हैं

क.        कृष्णभक्ति काव्य

ख.        रामभक्ति काव्य

बुधवार, 11 नवंबर 2020

कृष्ण भक्ति और सूरदास

  कृष्ण भक्ति:

कृष्ण भक्ति काव्य के प्रवर्तक बल्लभाचार्य थे । उनके चार और उनके पुत्र के चार शिष्यों को अष्टछाप कवि कहा गया । इनका केंद्र मथुरा था । इन कवियों ने कृष्ण की भक्ति की । इन्होंने कृष्ण की भक्ति सखा या प्रिय के रूप में की । इन कवियों ने कृष्ण के जीवन की लीलाओं का वर्णन किया । इन्होंने ब्रजभाषा में कविताएँ लिखीं। सूरदास इन कवियों में सबसे प्रसिद्ध कवि हैं । सूरसागरकृष्ण-भक्ति काव्य की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है ।

सूरदास

सूरदास का जन्म 1478 ई. के आस-पास हुआ था । इनके जन्म का स्थान दिल्ली के पास सीही गाँव है। सूरदास जन्म से अंधे थे । वे वृंदावन के श्री नाथ मंदिर में रहते थे । उनके गुरु का नाम बल्लभाचार्य था । सूरदास ने गेय मुक्तक लिखे । सूरदास के नाम से 25 रचनाएँ मिलती हैं । सूरसागरइनमें सबसे प्रसिद्ध है । सूरदास ने ब्रजभाषा में कविताएँ लिखीं ।  सूरदास की मृत्यु 1581 ई. में हुई थी।

सूरदास की कविता की विशेषताएँ :

1.         सूर की भक्ति सख्य-भाव की है।

2.         उन्होंने कृष्ण को अपना सखा(मित्र) मानकर भक्ति की।

3.         सूरदास ने कृष्ण की  बाल-लीला का वर्णन किया है ।

4.         राधा-कृष्ण के प्रेम का भी वर्णन वर्णन किया है ।

रविवार, 1 नवंबर 2020

प्रयोगवादी कविता

(1943-1954)

सप्तक

अज्ञेय ने अपने समय के सात नए कवियों की कविताओं के चार अलग-अलग संकलन संपादित किए थे । इन्हें सप्तक कहा जाता है।  तारसप्तक इनमें से पहला  है । 

    प्रयोगवाद की शुरुआत तार-सप्तक के प्रकाशन के साथ मानी जाती है । इसमें सात कवियों की कविताएँ संकलित थीं। तार-सप्तक संपादन सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने किया था । यह 1943 में प्रकाशित हुआ । इस पुस्तक की भूमिका में उन्होंने लिखा था कि इस तार-सप्तक के कवि राही नहीं राहों के अन्वेषी हैं अर्थात् ये सभी नए कवि थे जो कविता की दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए नई तरह की कविता लिखना चाहते थे । कविता के इस आंदोलन को प्रतीक (1947-1952) पत्रिका से बल मिला और दूसरा सप्तक ने इसे और मजबूत किया ।  

 प्रयोगवाद शब्द का अर्थ है, प्रयोग को महत्त्व देने वाली कविता । इस कविता में भाव, भाषा, शिल्प आदि सभी में नए प्रयोग किए गए । प्रयोगवादी कवियों ने पहले की हिंदी कविता को पुरानी और रूढ़ कहते हुए उसके भाव, प्रतीक, उपमान, और भाषा सबको नकार दिया । प्रयोगवादी  कवियों ने यह कहा कि ये सब पुराने पड़ चुके हैं और कविता में नई भाषा, नए उपमानों और नए प्रतीकों के प्रयोग की जरूरत है ।  प्रयोगवादी कविता व्यक्तिवादी मानी जाती है । इसपर योरोपीय चिंतन का प्रभाव था । इसका जन्म वाद (विचारधारा-केंद्रित कविता) के विरोध से हुआ । तारसप्तक के कई कवि मार्क्सवादी जीवन-दर्शन से प्रभावित थे, लेकिन उनमें से प्रायः ने प्रयोग के लिए विचारधारा छोड़ दी। यह एक तरह से अ-राजनीतिक कविता है ।

 

प्रयोगवाद की प्रवृत्तियाँ

1.      प्रयोगवाद पर आधुनिकतावाद का प्रभाव है ।

2.      प्रयोगवादी कविता में व्यक्तिवाद की प्रमुखता है । इसने व्यक्तिगत जीवन के यथार्थ की बात की ।

3.      इसने भावना की जगह बुद्धि को महत्त्व दिया ।

4.      यह मध्यवर्गीय जीवन की जटिलता का काव्य है।

5.      इसमें कहीं-कहीं संदेह, अनास्था और अनिश्चितता का स्वर भी सुनाई पड़ता है; जो द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों का प्रभाव है ।

6.      प्रयोगवादी कविता में पुराने उपमानों और प्रतीकों की जगह नए प्रतीक और उपमान रचे गए ।

7.      प्रयोगवादी कविता की भाषा-शैली में विविधता है । भाषा-शैली की एकरूपता को प्रयोगवादी कवि रूढ़ि और प्रयोग-विरोधी मानते हैं ।

 

प्रयोगवाद को तीन पदों (Terms) से पहचाना जा सकता है— 1. व्यक्ति को महत्त्व, 2. प्रयोगशीलता और 3. विविधता ।

1.       व्यक्ति को महत्त्व

यह दीप अकेला स्नेह भरा

है गर्व भरा मदमाता, पर

इसको भी पंक्ति को दे  दो ।

                               —अज्ञेय 

 प्रयोगवादी कवि व्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं । उनके अनुसार मनुष्य की सामाजिक के साथ-साथ एक अपनी निजी पहचान भी है । प्रयोगवादी कविताएँ मनुष्य की निजी पहचान (अस्तित्व) की कविताएँ हैं।


2.      प्रयोगशीलता

प्रयोगवादी कवि

गजानन माधव मुक्तिबोध’, रामविलास शर्मा, नेमिचंद्र जैन, गिरजा कुमार माथुर, भारत भूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे और सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

 प्रयोगवादी कवियों ने कविता के पुराने पैटर्न को अस्वीकार कर दिया और भाव, विचार, उपमान, प्रतीक, भाषा तथा शिल्प आदि में बदलाव की बात की । उन्होंने कहा कि इन सभी में नये प्रयोग किये जाने चाहिए ।  इसीलिए इन कवियों को प्रयोगवादी कवि कहा जाता है ।

3.      विविधता

 ये कवि प्रयोगवादी हैं । इसलिए कविता के किसी एक पैटर्न में नहीं बँधते । भाव और शिल्प दोनों में अलग-अलग कवियों की कविताओं में विविधता है । यहाँ तक की एक ही कवि की अलग-अलग कविता की भाषा भी अलग अलग है ।