सोमवार, 4 मई 2020

निराला : जीवन और साहित्य

 


निराला का वास्तविक नाम सूर्यकांत त्रिपाठी था। सन् 1923 में इन्होंने मतवाला नाम की पत्रिका का संपादन किया और और उन्होंने इसी पत्रिका से मिलता-जुलता अपना नाम निराला रख लिया।

निराला उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के रहने वाले थे । उनके पिता बंगाल में महिषादल राज्य में नौकरी करते थे । उनका जन्म वहीं हुआ ।  निराला अच्छी कद-काठी के व्यक्ति थे। अपनी युवा अवस्था में वे पहलवानी करते थे। विवाह के कुछ दिन बाद ही उनकी पत्नी की मृत्यु  हो गई ।

निराला इलाहाबाद में रहते थे । वे बहुत खर्चीले स्वभाव के स्वतंत्र व्यवहार वाले व्यक्ति थे । उनका पूरा जीवन अभाव( गरीबी ) में बीता था। अभाव के कारण ही 19 वर्ष की उम्र में उसकी मृत्य हो गई। निराला इसका इलाज नहीं करा सके । उनकी पुत्री का नाम सरोज था ।   उसकी मृत्यु के बाद निराला ने उसकी याद में एक लंबी कविता लिखी । इस कविता का शीर्षक सरोज-स्मृति है । यह पूरे हिंदी साहित्य में सबसे अनूठा शोक-गीत है । इसमें निराला ने अपने जीवन, परिवार और पुत्री सरोज के बारे में लिखा है ।

निराला ने कविता के अतिरिक्त अपन्यास और निबंध भी लिखे लेकिन उनकी पहचान उनकी कविताएँ हैं । उन्हें एक कवि के रूप में जाना जाता है ।

निराला के काव्य की विशेषताएँ :

1.      निराला ने हिंदी में मुक्त छंद कविताओं की शुरुआत की । उनकी जूही की कली कविता इसका अच्छा उदाहरण है ।

2.      निराला की कविता में प्रेम और सुंदरता के साथ आक्रोश (क्रोध) का स्वर भी सुनाई पड़ता है। इसीलिए उनकी कविता में माधुर्य और ओज दोनों है ।

3.      इनकी कविताओं में कल्पना और यथार्थ दोनों है । जूही की कली’, संध्या-सुंदरी अनुठी कल्पशीलता की उदाहरण हैं तो वह तोड़ती पत्थर और कुकुरमुत्ता निराला के यथार्थ-बोध की प्रमाण हैं ।

4.      निराला पर रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद के दर्शन का प्रभाव था । इसलिए उनकी कविताओं में रहस्यवाद भी दिखाई देता है । कौन तम के पार?’ जैसी कविताएँ इसकी उदाहरण है ।

5.      निराला की कविताओं में माधुर्य और ओज दोनों गुण हैं ।

6.      जुही की कली’, संध्या सुंदरी’, राम की शक्तिपूजा और सरोजस्मृति’, वह तोड़ती पत्थर और कुकुरमुत्ता निरला की सबसे प्रसिद्ध कविताएँ हैं ।

 

कुछ कविताएँ :

1.      रहस्य—

कौन तम के पार ?— (रे कह)

अखिल-पल के स्रोत, जल जग,

गगन घन-घन-धार— (रे, कह)

2.      कल्पना—

दिवसावसान का समय

मेघमय आसमान से उतर रही

संध्या-सुंदरी परी सी

धीरे-धीरे-धीरे

3.      यथार्थ—

 वह तोड़ती पत्थर।

देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर

वह तोड़ती पत्थर ।


सरोज-स्मृति

उनविंस पर जो प्रथम चरण

तेरा वह जीवन-सिंधु-तरण :

तनये ली कर दृक्पात तरुण

जनक से जन्म की विदा अरुण !

अर्थ: तुम्हारे कदमों के उन्नीस पर पड़ते ही, तुमने जीवन-सगर को पार कर लिया ( उन्नीसवर्ष की उम्र होते ही निराला की पुत्री सरोज की मृत्यु हो गई थी।) हे तनये (पुत्री)!  तुमने अपनी युवा आँखों को बंद कर लिया (तुम अपनी युवावस्था में ही मर गई ) । तुमने अपने पिता (निराला) से सांध्यकालीन विदा ले लिया ।

* 

धन्ये मैं पिता निरर्थक था,

कुछ भी तेरे हित न कर सका !

जाना तो अर्थागमोपाय

पर रहा सदा संकुचित काय

लखकर अनर्थ आर्थिक पथ पर

हारता रहा मैं स्वर्थ समर ।

अर्थ:  हे धन्ये (बेटी)! मैं बेकार ही तुम्हारा पिता था । तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सका । मैं पैसा कमाना तो जानता था, लेकिन हमेशा संकोच करता रहा । पैसे कमाने के रास्ते पर अनर्थ (बुराई) देखकर मैं अपने सवार्थ की लड़ाई हारता रहा । मैंने कभी भी पैसा कमाने के बारे में नहीं सोच सका।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें