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मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

अज्ञेय


अज्ञेय का पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन था । उनके पिता हीरानंद शस्त्री  एक पुरातत्त्ववेत्ता थे । अज्ञेय का जन्म कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) के पुरातत्त्व शिविर में  सन् 1911 ई.  में हुआ था ।

उन्होंने 1929 में विज्ञान में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की । उसके बाद उनके संबंध क्रांतिकारियों से हो गए और वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए । द्वितीय विश्व युद्ध के समय अज्ञेय ब्रीटिश सेना में भर्ती हुए  और पूर्वोत्तर भारत पर जापान की सेना के विरुद्ध मोर्चे पर तैनात रहे ।  उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया और  आल इंडिया रेडियो से भी जुड़े रहे ।






बुधवार, 11 नवंबर 2020

कृष्ण भक्ति और सूरदास

  कृष्ण भक्ति:

कृष्ण भक्ति काव्य के प्रवर्तक बल्लभाचार्य थे । उनके चार और उनके पुत्र के चार शिष्यों को अष्टछाप कवि कहा गया । इनका केंद्र मथुरा था । इन कवियों ने कृष्ण की भक्ति की । इन्होंने कृष्ण की भक्ति सखा या प्रिय के रूप में की । इन कवियों ने कृष्ण के जीवन की लीलाओं का वर्णन किया । इन्होंने ब्रजभाषा में कविताएँ लिखीं। सूरदास इन कवियों में सबसे प्रसिद्ध कवि हैं । सूरसागरकृष्ण-भक्ति काव्य की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है ।

सूरदास

सूरदास का जन्म 1478 ई. के आस-पास हुआ था । इनके जन्म का स्थान दिल्ली के पास सीही गाँव है। सूरदास जन्म से अंधे थे । वे वृंदावन के श्री नाथ मंदिर में रहते थे । उनके गुरु का नाम बल्लभाचार्य था । सूरदास ने गेय मुक्तक लिखे । सूरदास के नाम से 25 रचनाएँ मिलती हैं । सूरसागरइनमें सबसे प्रसिद्ध है । सूरदास ने ब्रजभाषा में कविताएँ लिखीं ।  सूरदास की मृत्यु 1581 ई. में हुई थी।

सूरदास की कविता की विशेषताएँ :

1.         सूर की भक्ति सख्य-भाव की है।

2.         उन्होंने कृष्ण को अपना सखा(मित्र) मानकर भक्ति की।

3.         सूरदास ने कृष्ण की  बाल-लीला का वर्णन किया है ।

4.         राधा-कृष्ण के प्रेम का भी वर्णन वर्णन किया है ।

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

जायसी

 

जायसी सूफी (प्रेमाश्रयी/प्रेममार्गी) कवि थे । उनका पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी था । उनका जन्म सन्1492 में जायस नगर में हुआ था । पद्मावतउनकी प्रसिद्ध पुस्तक है । पद्मावतमें राजा रतनसेन और पद्मावती की प्रेम-कथा  है । रतन सेन चित्तौड़ का राजा था और पद्मावती सिंघल द्वीप (श्रीलंका) की राजकुमारी।पद्मावतअवधी बोली में लिखी गई है।

जायसी के विचार :

1.      प्रेम संबंधी विचारमानुस पेम भयउ बैकुंठी। नाहिं त काह छार भरि मूठी।

2.      गुरु संबंधी विचारगुरु सुआ जेहि पंथ दिखावा बिनु गुरु कृपा को निरगुन पावा।

3.      ब्रह्म संबंधी विचार पद्मावती ईश्वर का प्रतीक है और रतनसेन जीव (मनुष्य) का।

4.      जायसी नागमती का वियोग वर्णन के लिये प्रसिद्ध हैं।

5.      नागमती के वियोग वर्णन में बारहमासा का प्रयोग है।

6.      बारहमासा वियोग के दुःख को बताने वाला एक काव्य है।

7.      पद्मावत मसनवी (सूफी) शैली का काव्य है ।

शनिवार, 9 मई 2020

गीत गाने दो मुझे : निराला

परिचय :

´  ‘गीत गाने दो मुझेकविता महाप्राण निराला की कविता है .

´  यह कविता उनके काव्य संकलन अर्चनामें संकलित है, जो सन्‌ 1950 में प्रकाशित हुई थी .

´  निराला छायावादी काव्य चतुष्टयी के प्रमुख कवि हैं .

´  इनकी कविता में प्रेम और सौंदर्य के सथ ही ओज और करुणा के स्वर भी सुनाई पड़ते हैं .

´  गीत गाने दो कविता भी ऐसी ही कविता है, जिसमें पीड़ा और आक्रोश की सम्मिलित अभिव्यक्ति है .

´   आत्मव्यंजकता या आत्माभिव्यक्ति गीत विधा की पहचान है . यहां भी निराला अपनी पीदा और आक्रोश को व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन यहाँ उनका मैं अहम्भारतोस्मि' (मैं भारत हूँ) से जुड़ा होने के कारण निराला की निजी पीड़ा के साथ भारत की जनता की पीड़ा भी है .

भावार्थ : 

गीत गाने दो कविता में निराला ने ऐसे समय की ओर इशारा किया है, जिसमें चोट खाते-खाते, संघर्ष करते-करते होश वालों के भी  होश खो गए हैं . यानी, जीवन जीना आसान नहीं रह गया है। पूरी मानवता हाहाकार कर रही है लगता है पृथ्वी की लौ बुझ गई है, मनुष्य में जिजीविषाखत्म हो गई है। इसी लौ को जगाने की बात कवि कर रहा है और वेदना को छिपाने वेफ लिए,उसे रोकने के लिए गीत गाना चाहता है। निराशा में आशा का संचार करना चाहता है।



काव्यार्थ: मुझे अपने भीतर की पीड़ा को दबाने के लिए गीत गाने दो. रास्ते की चोट खाकर होश वालों के होश ने भी जवाब दे दिया. हाथ में जो रास्ते का भोजन था उसे भी ठगने वाले मालिकों (सामंत और पूंजीपति वर्ग) ने हमारे अनजाने में लूट लिया. यह वातावरण बहुत दम-घोंटू है. ऐसा लग रहा है, जैसे मृत्यु करीब आ रही है. 

व्याख्या : जिसे तुम गीत समझ रहे हो, वह मेरे भीतर की पीडा है, जिसे मैं गा रहा हूँ . इसलिए तुम मुझे रोको मत मुझे अपने गीतों में उसे कह लेने दो . यह वेदना निरला के निजी-सुख दुख की वेदना नहीं भारत के तैतीस करो लोगों की वेदना है, जो अजाद भारत मैं खुशहली की उम्मीद लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके थे . उनके पस जो कुछ भी संबल था आधार था जीवन के रस्ते पर चलने के लिए सहारा था, वह सबकुछ मालिकों (पूंजीपतियो, सामंतो, राजनीतिज्ञों) ने अनजाने में मीठी-मीठी बातें कर और भविष्य के सुंदर सपने दिखाकर लूट लिया . वातावरण  इतना दम-घोंटू है कि इसने हमें मरणासन्न कर दिया है . अपनी बात कहने में गला रुँधा जा रहा है . अपनी पीड़ा को व्यक्त करना मुश्किल लग रहा है . इसलिए मुझे रोको मत मुझे गीत गाने दो क्योंकि ये गीत हमारी पीड़ा को दबाने का माध्यम है . 

काव्य-शिल्प : 

अलंकार : गीत गानेऔर ठग-ठाकुरों में अनुप्रास अलंकार . 

रस=करुण रस, 

छन्द : प्रगीत. गुण : प्रसाद गुण 

बिंब = कंठ रुकता जा रहा है, आ रहा है काल देखो दृश्य-बिम्ब,  

प्रतीक  = ठग-ठाकुर सत्ता मैं बैठे सामंतों, पूंजीपतियों के प्रतीक. 

भाषा- शैली = संस्कृतनिष्ठ मानक हिंदी का प्रयोग . भाव-सम्प्रेषण  के लिए राह चलते चोट खाना  होश के भी होश छूटना,  कंठ रूकना और काल आना में मुहावरो का प्रयोग

गुण : प्रसाद । 



काव्यार्थ: ऐसा लग रहा है जैसे यह संसार बार-बार हारकर अपने भीतर क्रोध और प्रतिशोध  के ज़हर से भर गया है । लोग एक दूसरे को ठीक से पहचान नहीं पा रहे हैं और अपरिचित निगाहों से सभी को देख रहे हैं । कुंती के बीतर की आग (जिसने अन्याय के खिलाफ महाभारत का युद्ध रच दिया था ) भी बुझ गई है । तुम एक बार फिर उस आग को सींचने के लिए जल उठो । 
व्याख्या : ऐसा लग रहा है कि हार-हार कर इस संसार के सभी मनुष्यों में क्रोध, प्रतिशोध और घृणा का जहर भर गया है । एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर विश्वास नहीं करता । लोग एक दूसरे के साथ अनजान की तरह देखते हैं । एक दूसरे के भीतर छिपी मनुष्यता, जिजीविषा, शक्ति आदि से वे अपरिचित हैं । जिस तरह अपमान और अन्याय के बावजूद कुंती ने अपने भीतर जिजीविषा कायम रखी उसके भीतर अपने अस्तित्व को जिलाए रखने कि शक्ति हमेशा जागती रही और इसी के कारण उसके पुत्र महाभारत में अन्याय और अपमान से लड़ सके, उस तरह की जिजीविषा और आत्मशक्ति लग रहा है बुझ उठी है । उस बुझी हुई शक्ति को अपने भीतर की जिजीविषा से सींचने के लिए तुम अपनी आत्मशक्ति को प्रज्वलित करो । 

काव्य-शिल्प : 

अलंकार : संसार जैसे हार खाकर अनुप्रास, लोग लोगों लाटानुप्रास तथा जल उठो फिर सींचने को में विरोधाभास । 

रस: वीर रस । 

छंद: प्रगीत। 

बिंब: बुझ जाना और जल उठना में 

दृश्य-बिंब । 

मिथक : पृथा के संदर्भ से महाभारत का मिथक, 

प्रतीक : लौ चेतना और क्रांति का प्रतीक । 

भाषा : सहज-संप्रेष्य मानक हिंदी का प्रयोग । 

शैली : लाक्षणिक




सोमवार, 4 मई 2020

निराला : जीवन और साहित्य

 


निराला का वास्तविक नाम सूर्यकांत त्रिपाठी था। सन् 1923 में इन्होंने मतवाला नाम की पत्रिका का संपादन किया और और उन्होंने इसी पत्रिका से मिलता-जुलता अपना नाम निराला रख लिया।

निराला उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के रहने वाले थे । उनके पिता बंगाल में महिषादल राज्य में नौकरी करते थे । उनका जन्म वहीं हुआ ।  निराला अच्छी कद-काठी के व्यक्ति थे। अपनी युवा अवस्था में वे पहलवानी करते थे। विवाह के कुछ दिन बाद ही उनकी पत्नी की मृत्यु  हो गई ।

निराला इलाहाबाद में रहते थे । वे बहुत खर्चीले स्वभाव के स्वतंत्र व्यवहार वाले व्यक्ति थे । उनका पूरा जीवन अभाव( गरीबी ) में बीता था। अभाव के कारण ही 19 वर्ष की उम्र में उसकी मृत्य हो गई। निराला इसका इलाज नहीं करा सके । उनकी पुत्री का नाम सरोज था ।   उसकी मृत्यु के बाद निराला ने उसकी याद में एक लंबी कविता लिखी । इस कविता का शीर्षक सरोज-स्मृति है । यह पूरे हिंदी साहित्य में सबसे अनूठा शोक-गीत है । इसमें निराला ने अपने जीवन, परिवार और पुत्री सरोज के बारे में लिखा है ।

निराला ने कविता के अतिरिक्त अपन्यास और निबंध भी लिखे लेकिन उनकी पहचान उनकी कविताएँ हैं । उन्हें एक कवि के रूप में जाना जाता है ।

निराला के काव्य की विशेषताएँ :

1.      निराला ने हिंदी में मुक्त छंद कविताओं की शुरुआत की । उनकी जूही की कली कविता इसका अच्छा उदाहरण है ।

2.      निराला की कविता में प्रेम और सुंदरता के साथ आक्रोश (क्रोध) का स्वर भी सुनाई पड़ता है। इसीलिए उनकी कविता में माधुर्य और ओज दोनों है ।

3.      इनकी कविताओं में कल्पना और यथार्थ दोनों है । जूही की कली’, संध्या-सुंदरी अनुठी कल्पशीलता की उदाहरण हैं तो वह तोड़ती पत्थर और कुकुरमुत्ता निराला के यथार्थ-बोध की प्रमाण हैं ।

4.      निराला पर रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद के दर्शन का प्रभाव था । इसलिए उनकी कविताओं में रहस्यवाद भी दिखाई देता है । कौन तम के पार?’ जैसी कविताएँ इसकी उदाहरण है ।

5.      निराला की कविताओं में माधुर्य और ओज दोनों गुण हैं ।

6.      जुही की कली’, संध्या सुंदरी’, राम की शक्तिपूजा और सरोजस्मृति’, वह तोड़ती पत्थर और कुकुरमुत्ता निरला की सबसे प्रसिद्ध कविताएँ हैं ।

 

कुछ कविताएँ :

1.      रहस्य—

कौन तम के पार ?— (रे कह)

अखिल-पल के स्रोत, जल जग,

गगन घन-घन-धार— (रे, कह)

2.      कल्पना—

दिवसावसान का समय

मेघमय आसमान से उतर रही

संध्या-सुंदरी परी सी

धीरे-धीरे-धीरे

3.      यथार्थ—

 वह तोड़ती पत्थर।

देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर

वह तोड़ती पत्थर ।


सरोज-स्मृति

उनविंस पर जो प्रथम चरण

तेरा वह जीवन-सिंधु-तरण :

तनये ली कर दृक्पात तरुण

जनक से जन्म की विदा अरुण !

अर्थ: तुम्हारे कदमों के उन्नीस पर पड़ते ही, तुमने जीवन-सगर को पार कर लिया ( उन्नीसवर्ष की उम्र होते ही निराला की पुत्री सरोज की मृत्यु हो गई थी।) हे तनये (पुत्री)!  तुमने अपनी युवा आँखों को बंद कर लिया (तुम अपनी युवावस्था में ही मर गई ) । तुमने अपने पिता (निराला) से सांध्यकालीन विदा ले लिया ।

* 

धन्ये मैं पिता निरर्थक था,

कुछ भी तेरे हित न कर सका !

जाना तो अर्थागमोपाय

पर रहा सदा संकुचित काय

लखकर अनर्थ आर्थिक पथ पर

हारता रहा मैं स्वर्थ समर ।

अर्थ:  हे धन्ये (बेटी)! मैं बेकार ही तुम्हारा पिता था । तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सका । मैं पैसा कमाना तो जानता था, लेकिन हमेशा संकोच करता रहा । पैसे कमाने के रास्ते पर अनर्थ (बुराई) देखकर मैं अपने सवार्थ की लड़ाई हारता रहा । मैंने कभी भी पैसा कमाने के बारे में नहीं सोच सका।