रचनाकार को जानें लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रचनाकार को जानें लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

मुक्ति बोध


मुक्तिबोध नई कविता के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं । उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु माना जाता है। इनका जन्म 13 नवंबर सन् 1917 ई. में ग्वालियर में हुआ था ।  इनके पिता पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर थे और उनका स्थानांतरण प्रायः होता रहता था। इसीलिए मुक्तिबोध जी की पढ़ाई में बाधा पड़ती रही। उन्होंने नागपुर के आकाशवाणी केंद्र और वाराणसी के हंस प्रेस में नौकरी की तथा विभिन्न विद्यालयों में अध्यापन भी किया । 1961 में उन्होंने छत्तीसगढ़ के राजनाँद गाँव के दिग्विजय कॉलेज में अध्यापन प्रारंभ किया । ट्यूबूर्कुलर मेनेजाइटिस बीमारी के कारण 11 सितंबर 1964 ई. को दिल्ली में उनका निधन हो गया ।

मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे। मनुष्य की अस्मिताआत्मसंघर्ष और प्रखर राजनैतिक चेतना से समृद्ध उनकी कविता पहली बार 'तार सप्तकके माध्यम से सामने आईलेकिन उनका कोई स्वतंत्र काव्य-संग्रह उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो पाया। मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा ने उनकी केवल 'एक साहित्यिक की डायरीप्रकाशि‍त की थीजिसका दूसरा संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ से उनकी मृत्यु के दो महीने बाद प्रकाशि‍त हुआ। 'चाँद का मुँह टेढ़ा हैका प्रकाशन 1964 में हुआ । इसी वर्ष नवंबर १९६४ में नागपुर के विश्‍वभारती प्रकाशन ने मुक्तिबोध द्वारा १९६३ में ही तैयार कर दिये गये निबंधों के संकलन नयी कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंधको प्रकाशि‍त किया था। परवर्ती वर्षो में भारतीय ज्ञानपीठ से मुक्तिबोध के अन्य संकलन 'काठ का सपना', तथा 'विपात्र' (लघु उपन्यास) प्रकाशि‍त हुए। पहले कविता संकलन के १५ वर्ष बाद१९८० में उनकी कविताओं का दूसरा संकलन 'भूरी भूरी खाक धूलप्रकाशि‍त हुआ।  

ज़िन्दगी में जो कुछ हैजो भी है 

सहर्ष स्वीकारा है; 

इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है 

वह तुम्हें प्यारा है। 

गरबीली ग़रीबी यहये गंभीर अनुभव सब 

यह विचार-वैभव सब 

दृढ़ता यहभीतर की सरिता यह अभिनव सब 

मौलिक हैमौलिक है 

इसलिए के पल-पल में 

जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है-- 

संवेदन तुम्हारा है !! 

 सहर्ष स्वीकारा है (भूरी-भूरी खाक धूल )

 


नागार्जुन

 


नागार्जुन का जन्म बिहार राज्य के मधुबनी जिले में हुआ था। उनका नाम वैद्यनाथ मिश्र था । उनकी आरंभिक शिक्षा संस्कृत में हुई । उसके बाद की शिक्षा उन्होंने स्वयं पढ़कर प्राप्त की । अपने बचपन से ही उन्होंने आस-पास की अनेक यात्राएँ की थीं । इसीलिए उन्होंने मैथिली भाषा में यात्री उपनाम से कविताएँ लिखी हैं ।

            राहुल सांकृत्यायन द्वारा पालि भाषा से अनुदित  संयुक्तनिकाय पुस्तक पढ़कर उनको पालि सीखने की इच्छा हुई । इसके लिए वे श्रीलंका गए । उन्होंने वहाँ पालि भाषा सीखी और  बौद्ध भिक्षुओं को संस्कृत पढ़ाने लगे ।

श्रीलंका में उनपर बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ा और उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया । वे बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन से बहुत प्रभावित थे । इसलिए उन्होंने अपना नया नाम नागार्जुन रखा ।  नागार्जुन ने हिंदी और मैथिली दोनों भाषाओं में कविताएँ लिखी हैं । उन्होंने अपना उपनाम हिंदी की कविताओं के लिए नागार्जुन और मैथिली में यात्री रखा है । 

·       नागार्जुन प्रगतिशील कवि हैं । प्रगतिशील कविता का संबंध मार्क्स के विचारों से है । इन कविताओं में मजदूरोंकिसानों और गरीबों की बात की गई है । नागार्जुन ने भी अपनी कविताओं में इन के लोगों के बारे में लिखा है ।

·       नागार्जुन की सामाज और राजनीतिक से संबंधित विषयों पर कविताएँ लिखी हैं । उन्होंने बिहार के किसान आंदोलन में भी भाग लिया था ।

·       नागार्जुन ने सामान्य जनता के जीवन और उसके सुख-दुःख को कविता का विषय बनाया है ।

·       नागार्जुन ने कविता में कल्पना की जगह यथार्थ को महत्त्व दिया है और सुंदरता को सामान्य जीवन में देखने की कोशिश की है ।

·       नागार्जुन की कविताओं की भाषा सरल है । 

कुछ कविताएँ :

कई दिनों तक चूल्हा रोया चाकी रही उदास

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पास

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गस्त

कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त

—नागार्जुन, अकाल के बाद

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

अज्ञेय


अज्ञेय का पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन था । उनके पिता हीरानंद शस्त्री  एक पुरातत्त्ववेत्ता थे । अज्ञेय का जन्म कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) के पुरातत्त्व शिविर में  सन् 1911 ई.  में हुआ था ।

उन्होंने 1929 में विज्ञान में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की । उसके बाद उनके संबंध क्रांतिकारियों से हो गए और वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए । द्वितीय विश्व युद्ध के समय अज्ञेय ब्रीटिश सेना में भर्ती हुए  और पूर्वोत्तर भारत पर जापान की सेना के विरुद्ध मोर्चे पर तैनात रहे ।  उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया और  आल इंडिया रेडियो से भी जुड़े रहे ।






गुरुवार, 19 नवंबर 2020

महादेवी वर्मा


महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले में हुआ था । उनके जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद में बीता था । वे प्रयाग महिला विद्यापीठ में अध्यापिका थीं। उनका विवाह बचपन में ही हो गया था, लेकिन वे जीवन-भर अविवाहित की तरह रहीं । माहदेवी वर्मा साहित्यकार के साथ-साथ कुशल चित्रकार भी थीं । वे संगीत में भी निपुण थीं । उन्होंने अनेक रचाओं के अनुवाद भी किए हैं ।

महादेवी  वर्मा छायावाद की महत्त्वपूर्ण कवयित्री थीं । उन्होंने छायावाद युग में कविताएँ लिखी हैं ।  प्रकृति के प्रति प्रेम और कल्पना छायावादी कविता की विशेषता है ।  यह विशेषता जयशंकर प्रसाद, निराला और पंत तीनों कवियों में है । तीनों ही प्रकृति की सुंदरता पर मोहित हैं ।  उनका प्रक्रिति से प्रेम कभी-कभी रहस्यवाद तक पहुँच जाता है । वे प्रकृति में ब्रह्म (ईश्वर) का आभास (अनुभव) पाने लगते हैं। इसलिए उनके  प्रकृति–प्रेम की कविताएँ रहस्यवादी हो जाती हैं । यह रहस्यवाद उनकी कविता की एक पहचान है । महादेवी वर्मा की कविता का मुख्य विषय रहस्यवाद है । वे इस प्रकृति में अज्ञात शक्ति (ईश्वर) की कल्पना करती हैं । उनकी कवितओं में प्रकृति की क्रियाओं को उसी का संदेश सुना गया है ।

महादेवी वर्मा ने अप्रत्यक्ष सत्ता से प्रेम की कविताएँ लिखीं । उनका प्रेमी इस दुनिया से दूर कहीं कहीं इस प्रकृति  के उसपार है । उहोंने अपनी कविताओं में इस विरह को ही विषय बनाया । उनकी कविताएँ प्रेम की पीड़ा (दुःख) की कविताएँ हैं । इसलिए उनपर बुद्ध के दुःखवाद प्रभाव माना जाता है । महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीरा कहा गया है ।

महादेवी वर्मा  ने गद्य  में भी रचनाएँ कीं । उनके संस्मरण और रेखाचित्र बहुत प्रसिद्ध  हैं ।  उनके गद्य-लेखन में उनकी स्त्री-चेतना दिखाई पड़ती है । उन्होंने अपने जीवन में भी स्त्री-शिक्षा और स्त्री-शिक्षा के लिए काम किए ।

महादेवी वर्मा को उनके काव्यसंग्रह यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया । यह भारतीय साहित्य का सबसे पुरस्कार है ।

 

बुधवार, 11 नवंबर 2020

कृष्ण भक्ति और सूरदास

  कृष्ण भक्ति:

कृष्ण भक्ति काव्य के प्रवर्तक बल्लभाचार्य थे । उनके चार और उनके पुत्र के चार शिष्यों को अष्टछाप कवि कहा गया । इनका केंद्र मथुरा था । इन कवियों ने कृष्ण की भक्ति की । इन्होंने कृष्ण की भक्ति सखा या प्रिय के रूप में की । इन कवियों ने कृष्ण के जीवन की लीलाओं का वर्णन किया । इन्होंने ब्रजभाषा में कविताएँ लिखीं। सूरदास इन कवियों में सबसे प्रसिद्ध कवि हैं । सूरसागरकृष्ण-भक्ति काव्य की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है ।

सूरदास

सूरदास का जन्म 1478 ई. के आस-पास हुआ था । इनके जन्म का स्थान दिल्ली के पास सीही गाँव है। सूरदास जन्म से अंधे थे । वे वृंदावन के श्री नाथ मंदिर में रहते थे । उनके गुरु का नाम बल्लभाचार्य था । सूरदास ने गेय मुक्तक लिखे । सूरदास के नाम से 25 रचनाएँ मिलती हैं । सूरसागरइनमें सबसे प्रसिद्ध है । सूरदास ने ब्रजभाषा में कविताएँ लिखीं ।  सूरदास की मृत्यु 1581 ई. में हुई थी।

सूरदास की कविता की विशेषताएँ :

1.         सूर की भक्ति सख्य-भाव की है।

2.         उन्होंने कृष्ण को अपना सखा(मित्र) मानकर भक्ति की।

3.         सूरदास ने कृष्ण की  बाल-लीला का वर्णन किया है ।

4.         राधा-कृष्ण के प्रेम का भी वर्णन वर्णन किया है ।

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

जायसी

 

जायसी सूफी (प्रेमाश्रयी/प्रेममार्गी) कवि थे । उनका पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी था । उनका जन्म सन्1492 में जायस नगर में हुआ था । पद्मावतउनकी प्रसिद्ध पुस्तक है । पद्मावतमें राजा रतनसेन और पद्मावती की प्रेम-कथा  है । रतन सेन चित्तौड़ का राजा था और पद्मावती सिंघल द्वीप (श्रीलंका) की राजकुमारी।पद्मावतअवधी बोली में लिखी गई है।

जायसी के विचार :

1.      प्रेम संबंधी विचारमानुस पेम भयउ बैकुंठी। नाहिं त काह छार भरि मूठी।

2.      गुरु संबंधी विचारगुरु सुआ जेहि पंथ दिखावा बिनु गुरु कृपा को निरगुन पावा।

3.      ब्रह्म संबंधी विचार पद्मावती ईश्वर का प्रतीक है और रतनसेन जीव (मनुष्य) का।

4.      जायसी नागमती का वियोग वर्णन के लिये प्रसिद्ध हैं।

5.      नागमती के वियोग वर्णन में बारहमासा का प्रयोग है।

6.      बारहमासा वियोग के दुःख को बताने वाला एक काव्य है।

7.      पद्मावत मसनवी (सूफी) शैली का काव्य है ।

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

कबीर


 कबीर

संत कबीर का जन्म बनारस में संवत् 1455 (1398 ई.) में हुआ था । इन्हें नीरू और नीमा नाम के जुलाहा दंपति ने पाला था । कबीर जुलाहे का काम करते थे । वे ज्ञानमार्गी/ज्ञानश्रयी कवि थे । कबीर अशिक्षित (मसि कागद छूयो नहीं  कलम गही नहिं हाथ) । 

कबीर की वाणी का संकलन बीजकमें है । इसके तीन खंड हैं1. साखी, 2. सबद 3. रमैनी।

कबीर के विचार  :

1.      कविता के बारे में – तुम जिन जानो गीत है वह निज ब्रह्म विचार।

2.      निर्गुण ब्रह्म के बारे में  जाके मुख माथा नहीं नाहीं रूप कुरूप।

पुहुप बास तैं पातरा ऐसो तत्त अनूप ।

3.      ब्रह्म को प्रेमी माना और अपने को प्रेयसी हिरि मोरे पिउ मैं राम की बहुरिया।

4.      प्रेम को महत्व कबीर यह घर प्रेम का खाला का घर नहिं।

5.      मूर्ति-पूजा का विरोध  पाहन पूजे हरि मिलें तौ मैं पूजूँ पहार।

6.      हिंदू-मुस्लिम एकता  हिंदू मुए राम कहि मुसलमान खुदाई।

7.      गुरु का महत्व गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागूँ पाँय।

सोमवार, 4 मई 2020

निराला : जीवन और साहित्य

 


निराला का वास्तविक नाम सूर्यकांत त्रिपाठी था। सन् 1923 में इन्होंने मतवाला नाम की पत्रिका का संपादन किया और और उन्होंने इसी पत्रिका से मिलता-जुलता अपना नाम निराला रख लिया।

निराला उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के रहने वाले थे । उनके पिता बंगाल में महिषादल राज्य में नौकरी करते थे । उनका जन्म वहीं हुआ ।  निराला अच्छी कद-काठी के व्यक्ति थे। अपनी युवा अवस्था में वे पहलवानी करते थे। विवाह के कुछ दिन बाद ही उनकी पत्नी की मृत्यु  हो गई ।

निराला इलाहाबाद में रहते थे । वे बहुत खर्चीले स्वभाव के स्वतंत्र व्यवहार वाले व्यक्ति थे । उनका पूरा जीवन अभाव( गरीबी ) में बीता था। अभाव के कारण ही 19 वर्ष की उम्र में उसकी मृत्य हो गई। निराला इसका इलाज नहीं करा सके । उनकी पुत्री का नाम सरोज था ।   उसकी मृत्यु के बाद निराला ने उसकी याद में एक लंबी कविता लिखी । इस कविता का शीर्षक सरोज-स्मृति है । यह पूरे हिंदी साहित्य में सबसे अनूठा शोक-गीत है । इसमें निराला ने अपने जीवन, परिवार और पुत्री सरोज के बारे में लिखा है ।

निराला ने कविता के अतिरिक्त अपन्यास और निबंध भी लिखे लेकिन उनकी पहचान उनकी कविताएँ हैं । उन्हें एक कवि के रूप में जाना जाता है ।

निराला के काव्य की विशेषताएँ :

1.      निराला ने हिंदी में मुक्त छंद कविताओं की शुरुआत की । उनकी जूही की कली कविता इसका अच्छा उदाहरण है ।

2.      निराला की कविता में प्रेम और सुंदरता के साथ आक्रोश (क्रोध) का स्वर भी सुनाई पड़ता है। इसीलिए उनकी कविता में माधुर्य और ओज दोनों है ।

3.      इनकी कविताओं में कल्पना और यथार्थ दोनों है । जूही की कली’, संध्या-सुंदरी अनुठी कल्पशीलता की उदाहरण हैं तो वह तोड़ती पत्थर और कुकुरमुत्ता निराला के यथार्थ-बोध की प्रमाण हैं ।

4.      निराला पर रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद के दर्शन का प्रभाव था । इसलिए उनकी कविताओं में रहस्यवाद भी दिखाई देता है । कौन तम के पार?’ जैसी कविताएँ इसकी उदाहरण है ।

5.      निराला की कविताओं में माधुर्य और ओज दोनों गुण हैं ।

6.      जुही की कली’, संध्या सुंदरी’, राम की शक्तिपूजा और सरोजस्मृति’, वह तोड़ती पत्थर और कुकुरमुत्ता निरला की सबसे प्रसिद्ध कविताएँ हैं ।

 

कुछ कविताएँ :

1.      रहस्य—

कौन तम के पार ?— (रे कह)

अखिल-पल के स्रोत, जल जग,

गगन घन-घन-धार— (रे, कह)

2.      कल्पना—

दिवसावसान का समय

मेघमय आसमान से उतर रही

संध्या-सुंदरी परी सी

धीरे-धीरे-धीरे

3.      यथार्थ—

 वह तोड़ती पत्थर।

देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर

वह तोड़ती पत्थर ।


सरोज-स्मृति

उनविंस पर जो प्रथम चरण

तेरा वह जीवन-सिंधु-तरण :

तनये ली कर दृक्पात तरुण

जनक से जन्म की विदा अरुण !

अर्थ: तुम्हारे कदमों के उन्नीस पर पड़ते ही, तुमने जीवन-सगर को पार कर लिया ( उन्नीसवर्ष की उम्र होते ही निराला की पुत्री सरोज की मृत्यु हो गई थी।) हे तनये (पुत्री)!  तुमने अपनी युवा आँखों को बंद कर लिया (तुम अपनी युवावस्था में ही मर गई ) । तुमने अपने पिता (निराला) से सांध्यकालीन विदा ले लिया ।

* 

धन्ये मैं पिता निरर्थक था,

कुछ भी तेरे हित न कर सका !

जाना तो अर्थागमोपाय

पर रहा सदा संकुचित काय

लखकर अनर्थ आर्थिक पथ पर

हारता रहा मैं स्वर्थ समर ।

अर्थ:  हे धन्ये (बेटी)! मैं बेकार ही तुम्हारा पिता था । तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सका । मैं पैसा कमाना तो जानता था, लेकिन हमेशा संकोच करता रहा । पैसे कमाने के रास्ते पर अनर्थ (बुराई) देखकर मैं अपने सवार्थ की लड़ाई हारता रहा । मैंने कभी भी पैसा कमाने के बारे में नहीं सोच सका।