कबीर
संत कबीर का जन्म बनारस में संवत् 1455 (1398 ई.) में हुआ था । इन्हें नीरू और नीमा नाम के जुलाहा दंपति ने पाला था । कबीर जुलाहे का काम करते थे । वे ज्ञानमार्गी/ज्ञानश्रयी कवि थे । कबीर अशिक्षित (मसि कागद छूयो नहीं कलम गही नहिं हाथ) ।
कबीर
की वाणी का संकलन ‘बीजक’ में
है । इसके तीन खंड हैं—1. साखी, 2. सबद
3. रमैनी।
कबीर के विचार :
1. कविता
के बारे में – ‘तुम जिन जानो
गीत है वह निज ब्रह्म विचार।’
2. निर्गुण
ब्रह्म के बारे में — जाके मुख माथा नहीं नाहीं रूप कुरूप।
पुहुप
बास तैं पातरा ऐसो तत्त अनूप ।
3. ब्रह्म
को प्रेमी माना और अपने को प्रेयसी— हिरि मोरे
पिउ मैं राम की बहुरिया।
4. प्रेम
को महत्व— कबीर यह घर प्रेम का
खाला का घर नहिं।
5. मूर्ति-पूजा
का विरोध—
पाहन पूजे हरि मिलें तौ मैं पूजूँ पहार।
6. हिंदू-मुस्लिम
एकता— हिंदू मुए राम कहि मुसलमान खुदाई।
7. गुरु
का महत्व— गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागूँ पाँय।