मुक्तिबोध नई कविता के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं । उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु माना जाता है। इनका जन्म 13 नवंबर सन् 1917 ई. में ग्वालियर में हुआ था । इनके पिता पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर थे और उनका स्थानांतरण प्रायः होता रहता था। इसीलिए मुक्तिबोध जी की पढ़ाई में बाधा पड़ती रही। उन्होंने नागपुर के आकाशवाणी केंद्र और वाराणसी के हंस प्रेस में नौकरी की तथा विभिन्न विद्यालयों में अध्यापन भी किया । 1961 में उन्होंने छत्तीसगढ़ के राजनाँद गाँव के दिग्विजय कॉलेज में अध्यापन प्रारंभ किया । ट्यूबूर्कुलर मेनेजाइटिस बीमारी के कारण 11 सितंबर 1964 ई. को दिल्ली में उनका निधन हो गया ।
मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे। मनुष्य की अस्मिता, आत्मसंघर्ष और प्रखर राजनैतिक चेतना से समृद्ध उनकी कविता पहली बार 'तार सप्तक' के माध्यम से सामने आई, लेकिन उनका कोई स्वतंत्र काव्य-संग्रह उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो पाया। मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा ने उनकी केवल 'एक साहित्यिक की डायरी' प्रकाशित की थी, जिसका दूसरा संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ से उनकी मृत्यु के दो महीने बाद प्रकाशित हुआ। 'चाँद का मुँह टेढ़ा है' का प्रकाशन 1964 में हुआ । इसी वर्ष नवंबर १९६४ में नागपुर के विश्वभारती प्रकाशन ने मुक्तिबोध द्वारा १९६३ में ही तैयार कर दिये गये निबंधों के संकलन नयी कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध' को प्रकाशित किया था। परवर्ती वर्षो में भारतीय ज्ञानपीठ से मुक्तिबोध के अन्य संकलन 'काठ का सपना', तथा 'विपात्र' (लघु उपन्यास) प्रकाशित हुए। पहले कविता संकलन के १५ वर्ष बाद, १९८० में उनकी कविताओं का दूसरा संकलन 'भूरी भूरी खाक धूल' प्रकाशित हुआ।
ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली ग़रीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए के पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है--
संवेदन तुम्हारा है !!
— सहर्ष स्वीकारा है (भूरी-भूरी खाक धूल )
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020
मुक्ति बोध
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