परिचय :
´ ‘गीत गाने दो मुझे’
कविता महाप्राण
निराला की कविता है .
´ यह कविता उनके काव्य
संकलन ‘अर्चना’
में संकलित है,
जो सन् 1950 में
प्रकाशित हुई थी .
´ निराला छायावादी
काव्य चतुष्टयी के प्रमुख कवि हैं .
´ इनकी कविता में प्रेम
और सौंदर्य के सथ ही ओज और करुणा के स्वर भी सुनाई पड़ते हैं .
´ गीत गाने दो कविता
भी ऐसी ही कविता है, जिसमें पीड़ा और आक्रोश की सम्मिलित अभिव्यक्ति है .
´ आत्मव्यंजकता या आत्माभिव्यक्ति गीत विधा की पहचान है . यहां भी निराला अपनी पीदा और आक्रोश को व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन यहाँ उनका मैं ‘अहम्भारतोस्मि' (मैं भारत हूँ) से जुड़ा होने के कारण निराला की निजी पीड़ा के साथ भारत की जनता की पीड़ा भी है .
भावार्थ :
काव्यार्थ: मुझे अपने भीतर की पीड़ा को दबाने के लिए
गीत गाने दो. रास्ते की चोट खाकर होश वालों के होश ने भी जवाब दे दिया. हाथ में जो
रास्ते का भोजन था उसे भी ठगने वाले मालिकों (सामंत और पूंजीपति
वर्ग) ने हमारे अनजाने में लूट लिया. यह वातावरण बहुत दम-घोंटू है. ऐसा लग रहा है,
जैसे मृत्यु करीब आ रही है.
व्याख्या : जिसे तुम गीत समझ रहे हो, वह मेरे भीतर की पीडा है, जिसे मैं गा रहा हूँ . इसलिए तुम मुझे रोको मत मुझे अपने गीतों में उसे कह लेने दो . यह वेदना निरला के निजी-सुख दुख की वेदना नहीं भारत के तैतीस करो लोगों की वेदना है, जो अजाद भारत मैं खुशहली की उम्मीद लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके थे . उनके पस जो कुछ भी संबल था आधार था जीवन के रस्ते पर चलने के लिए सहारा था, वह सबकुछ मालिकों (पूंजीपतियो, सामंतो, राजनीतिज्ञों) ने अनजाने में मीठी-मीठी बातें कर और भविष्य के सुंदर सपने दिखाकर लूट लिया . वातावरण इतना दम-घोंटू है कि इसने हमें मरणासन्न कर दिया है . अपनी बात कहने में गला रुँधा जा रहा है . अपनी पीड़ा को व्यक्त करना मुश्किल लग रहा है . इसलिए मुझे रोको मत मुझे गीत गाने दो क्योंकि ये गीत हमारी पीड़ा को दबाने का माध्यम है .
काव्य-शिल्प :
अलंकार : ‘गीत गाने’ और ठग-ठाकुरों में अनुप्रास अलंकार .
रस=करुण रस,
छन्द : प्रगीत. गुण : प्रसाद गुण
बिंब = ‘कंठ रुकता जा रहा है, आ रहा है काल देखो’ दृश्य-बिम्ब,
प्रतीक = ठग-ठाकुर सत्ता मैं बैठे सामंतों, पूंजीपतियों के प्रतीक.
भाषा- शैली = संस्कृतनिष्ठ मानक हिंदी का प्रयोग . भाव-सम्प्रेषण के लिए राह चलते चोट खाना होश के भी होश छूटना, कंठ रूकना और काल आना में मुहावरो का प्रयोग.
गुण : प्रसाद ।
काव्य-शिल्प :
अलंकार : ‘संसार जैसे हार खाकर’ अनुप्रास, लोग लोगों लाटानुप्रास तथा ‘जल उठो फिर सींचने को’ में विरोधाभास ।
रस: वीर रस ।
छंद: प्रगीत।
बिंब: बुझ जाना और जल उठना में
दृश्य-बिंब ।
मिथक : पृथा के संदर्भ से महाभारत का मिथक,
प्रतीक : लौ चेतना और क्रांति का प्रतीक ।
भाषा : सहज-संप्रेष्य मानक हिंदी का प्रयोग ।
शैली : लाक्षणिक
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