शनिवार, 9 मई 2020

गीत गाने दो मुझे : निराला

परिचय :

´  ‘गीत गाने दो मुझेकविता महाप्राण निराला की कविता है .

´  यह कविता उनके काव्य संकलन अर्चनामें संकलित है, जो सन्‌ 1950 में प्रकाशित हुई थी .

´  निराला छायावादी काव्य चतुष्टयी के प्रमुख कवि हैं .

´  इनकी कविता में प्रेम और सौंदर्य के सथ ही ओज और करुणा के स्वर भी सुनाई पड़ते हैं .

´  गीत गाने दो कविता भी ऐसी ही कविता है, जिसमें पीड़ा और आक्रोश की सम्मिलित अभिव्यक्ति है .

´   आत्मव्यंजकता या आत्माभिव्यक्ति गीत विधा की पहचान है . यहां भी निराला अपनी पीदा और आक्रोश को व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन यहाँ उनका मैं अहम्भारतोस्मि' (मैं भारत हूँ) से जुड़ा होने के कारण निराला की निजी पीड़ा के साथ भारत की जनता की पीड़ा भी है .

भावार्थ : 

गीत गाने दो कविता में निराला ने ऐसे समय की ओर इशारा किया है, जिसमें चोट खाते-खाते, संघर्ष करते-करते होश वालों के भी  होश खो गए हैं . यानी, जीवन जीना आसान नहीं रह गया है। पूरी मानवता हाहाकार कर रही है लगता है पृथ्वी की लौ बुझ गई है, मनुष्य में जिजीविषाखत्म हो गई है। इसी लौ को जगाने की बात कवि कर रहा है और वेदना को छिपाने वेफ लिए,उसे रोकने के लिए गीत गाना चाहता है। निराशा में आशा का संचार करना चाहता है।



काव्यार्थ: मुझे अपने भीतर की पीड़ा को दबाने के लिए गीत गाने दो. रास्ते की चोट खाकर होश वालों के होश ने भी जवाब दे दिया. हाथ में जो रास्ते का भोजन था उसे भी ठगने वाले मालिकों (सामंत और पूंजीपति वर्ग) ने हमारे अनजाने में लूट लिया. यह वातावरण बहुत दम-घोंटू है. ऐसा लग रहा है, जैसे मृत्यु करीब आ रही है. 

व्याख्या : जिसे तुम गीत समझ रहे हो, वह मेरे भीतर की पीडा है, जिसे मैं गा रहा हूँ . इसलिए तुम मुझे रोको मत मुझे अपने गीतों में उसे कह लेने दो . यह वेदना निरला के निजी-सुख दुख की वेदना नहीं भारत के तैतीस करो लोगों की वेदना है, जो अजाद भारत मैं खुशहली की उम्मीद लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके थे . उनके पस जो कुछ भी संबल था आधार था जीवन के रस्ते पर चलने के लिए सहारा था, वह सबकुछ मालिकों (पूंजीपतियो, सामंतो, राजनीतिज्ञों) ने अनजाने में मीठी-मीठी बातें कर और भविष्य के सुंदर सपने दिखाकर लूट लिया . वातावरण  इतना दम-घोंटू है कि इसने हमें मरणासन्न कर दिया है . अपनी बात कहने में गला रुँधा जा रहा है . अपनी पीड़ा को व्यक्त करना मुश्किल लग रहा है . इसलिए मुझे रोको मत मुझे गीत गाने दो क्योंकि ये गीत हमारी पीड़ा को दबाने का माध्यम है . 

काव्य-शिल्प : 

अलंकार : गीत गानेऔर ठग-ठाकुरों में अनुप्रास अलंकार . 

रस=करुण रस, 

छन्द : प्रगीत. गुण : प्रसाद गुण 

बिंब = कंठ रुकता जा रहा है, आ रहा है काल देखो दृश्य-बिम्ब,  

प्रतीक  = ठग-ठाकुर सत्ता मैं बैठे सामंतों, पूंजीपतियों के प्रतीक. 

भाषा- शैली = संस्कृतनिष्ठ मानक हिंदी का प्रयोग . भाव-सम्प्रेषण  के लिए राह चलते चोट खाना  होश के भी होश छूटना,  कंठ रूकना और काल आना में मुहावरो का प्रयोग

गुण : प्रसाद । 



काव्यार्थ: ऐसा लग रहा है जैसे यह संसार बार-बार हारकर अपने भीतर क्रोध और प्रतिशोध  के ज़हर से भर गया है । लोग एक दूसरे को ठीक से पहचान नहीं पा रहे हैं और अपरिचित निगाहों से सभी को देख रहे हैं । कुंती के बीतर की आग (जिसने अन्याय के खिलाफ महाभारत का युद्ध रच दिया था ) भी बुझ गई है । तुम एक बार फिर उस आग को सींचने के लिए जल उठो । 
व्याख्या : ऐसा लग रहा है कि हार-हार कर इस संसार के सभी मनुष्यों में क्रोध, प्रतिशोध और घृणा का जहर भर गया है । एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर विश्वास नहीं करता । लोग एक दूसरे के साथ अनजान की तरह देखते हैं । एक दूसरे के भीतर छिपी मनुष्यता, जिजीविषा, शक्ति आदि से वे अपरिचित हैं । जिस तरह अपमान और अन्याय के बावजूद कुंती ने अपने भीतर जिजीविषा कायम रखी उसके भीतर अपने अस्तित्व को जिलाए रखने कि शक्ति हमेशा जागती रही और इसी के कारण उसके पुत्र महाभारत में अन्याय और अपमान से लड़ सके, उस तरह की जिजीविषा और आत्मशक्ति लग रहा है बुझ उठी है । उस बुझी हुई शक्ति को अपने भीतर की जिजीविषा से सींचने के लिए तुम अपनी आत्मशक्ति को प्रज्वलित करो । 

काव्य-शिल्प : 

अलंकार : संसार जैसे हार खाकर अनुप्रास, लोग लोगों लाटानुप्रास तथा जल उठो फिर सींचने को में विरोधाभास । 

रस: वीर रस । 

छंद: प्रगीत। 

बिंब: बुझ जाना और जल उठना में 

दृश्य-बिंब । 

मिथक : पृथा के संदर्भ से महाभारत का मिथक, 

प्रतीक : लौ चेतना और क्रांति का प्रतीक । 

भाषा : सहज-संप्रेष्य मानक हिंदी का प्रयोग । 

शैली : लाक्षणिक




सोमवार, 4 मई 2020

निराला : जीवन और साहित्य


सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हिंदी साहित्य के महान कवि थे, जिनका योगदान साहित्य जगत में अमूल्य है। उनका जन्म 21 फरवरी 1896 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था। वे एक स्वतंत्र विचारक, क्रांतिकारी कवि और अद्वितीय साहित्यकार थे। उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उनकी कविताओं में हमेशा एक विशेष शक्ति, संवेदना और गहरी समझ दिखाई देती है।

निराला का जीवन और प्रेरणा

निराला का जीवन कठिनाइयों और अभावों से भरा हुआ था। उनके पिता बंगाल के महिषादल राज्य में नौकरी करते थे, और उनका जन्म वहीं हुआ। निराला अपनी युवा अवस्था में पहलवानी करते थे और शारीरिक रूप से अच्छे कद-काठी के थे। उनका जीवन कठिनाइयों में बीता। शादी के कुछ ही दिनों बाद उनकी पत्नी का निधन हो गया, और इसके बाद उनके जीवन में और भी कठिनाइयाँ आईं। इसके बावजूद, निराला ने साहित्य की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई।

उनका जीवन आर्थिक संकटों से जूझता हुआ बीता, लेकिन इसका असर उनकी कविता पर कभी नहीं पड़ा। उनका शोक, ग़म, और संघर्ष उनकी कविताओं में झलकता है, जो उन्हें एक अद्वितीय कवि बनाता है। निराला की पुत्री सरोज का निधन भी उनके जीवन का एक दर्दनाक मोड़ था, और उसकी याद में उन्होंने 'सरोज-स्मृति' नामक लंबी कविता लिखी, जो हिंदी साहित्य में एक अनूठी शोक-गीत मानी जाती है।

निराला की काव्य विशेषताएँ

निराला ने हिंदी कविता में कई नई दिशाओं की खोज की। उनकी कविता में जहाँ एक ओर प्रेम और सुंदरता की झलक मिलती है, वहीं दूसरी ओर उसमें आक्रोश और यथार्थ का भी प्रमुख स्थान है। उनकी कविता का मुख्य तत्व था उनका अद्वितीय शैली, जिसमें वे मुक्त छंद का प्रयोग करते थे। 'जूही की कली' उनकी इस शैली का बेहतरीन उदाहरण है।

निराला की कविता में माधुर्य और ओज दोनों गुण मिलते हैं। उनकी कविताओं में कल्पना और यथार्थ दोनों का सुंदर संतुलन है। 'वह तोड़ती पत्थर' और 'कुकुरमुत्ता' जैसी कविताएँ निराला के यथार्थबोध की गवाह हैं, जबकि 'संध्या-सुंदरी' और 'जूही की कली' जैसी कविताएँ उनकी कल्पना और सुंदरता को दर्शाती हैं।

निराला की कविताओं में उनके जीवन के दर्शन और प्रभाव भी दिखाई देते हैं। रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित निराला की कविताओं में रहस्यवाद और आध्यात्मिकता का समावेश है। 'कौन तम के पार?' जैसी कविताएँ इसके उदाहरण हैं।

कुछ प्रसिद्ध कविताएँ

  1. रहस्य—

    • "कौन तम के पार?"
    • "अखिल-पल के स्रोत, जल जग, गगन घन-घन-धार—"
  2. कल्पना—

    • "दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही संध्या-सुंदरी परी सी धीरे-धीरे-धीरे।"
  3. यथार्थ—

    • "वह तोड़ती पत्थर।"
    • "देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर वह तोड़ती पत्थर।"

निराला की प्रमुख कविताएँ

  1. जूही की कली
  2. संध्या-सुंदरी
  3. राम की शक्तिपूजा
  4. सरोज-स्मृति
  5. वह तोड़ती पत्थर
  6. कुकुरमुत्ता

निराला की कविताओं का प्रभाव

निराला की कविताएँ हिंदी साहित्य के इतिहास में मील के पत्थर के रूप में देखी जाती हैं। उन्होंने भारतीय कविता को एक नई दिशा दी, जहाँ भावनाओं और विचारों का अद्वितीय संयोजन देखने को मिलता है। उनकी कविताओं में जीवन के हर पहलू की गहरी अभिव्यक्ति होती है—आध्यात्मिकता से लेकर भौतिक संघर्ष तक। निराला का लेखन न केवल उनके समय के, बल्कि आज के समय में भी उतना ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।

निष्कर्ष

निराला का साहित्य सृजन उनके जीवन के संघर्षों, दृष्टिकोण और गहरे आत्मविश्लेषण का परिणाम था। उनका साहित्य जीवन के कठिनतम पहलुओं को सुंदरता, संघर्ष, और शोक के माध्यम से व्यक्त करता है। हिंदी साहित्य में उनकी पहचान एक महान कवि और लेखक के रूप में सदैव बनी रहेगी।