सोमवार, 10 अगस्त 2020

भारतेंदु युग (सन् 1850 से 1900 ई.)


भारतेंदु युग का नामकरण भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम पर किया गया, जिन्हें हिंदी साहित्य का प्रथम आधुनिक कवि और साहित्यकार माना जाता है। यह युग हिंदी साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था, जो नई सोच, नई भाषा, और नई संवेदनाओं का वाहक बना। इस युग में न केवल कविता का विकास हुआ, बल्कि गद्य लेखन भी स्थापित हुआ, जिससे साहित्य का दायरा विस्तारित हुआ।

भारतेंदु युग की विशेषताएँ:

  1. कविता और गद्य का समांतर विकास:

    • इस युग में कविता के साथ-साथ गद्य लेखन का भी तेजी से विकास हुआ। कविता अधिकतर ब्रजभाषा में लिखी गई, जबकि गद्य खड़ी बोली में लिखा गया। खड़ी बोली का उपयोग इस युग में हिंदी के अधिकृत रूप के रूप में किया गया।
  2. काव्य में स्वचेतनता:

    • भारतेंदु युग की कविताओं में स्वचेतनता (self-consciousness) की प्रवृत्ति दिखाई देती है। कवियों ने अपने समय की समस्याओं को संबोधित किया, जिसमें देशभक्ति, समाज सुधार, ब्रिटिश शासन और भारतीय संस्कृति की चर्चा की गई।
    • राज-भक्ति के साथ-साथ देशभक्ति की कविताओं का भी विस्तार हुआ। भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक और राजनीतिक असमानताओं पर भी चिंता व्यक्त की गई।
  3. सामाजिक और राजनीतिक विचार:

    • भारतेंदु युग में कवियों ने ब्रिटिश शासन के नकारात्मक प्रभावों की आलोचना की। उन्होंने ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों और भारत में अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई।
    • निज भाषा के महत्व को भी इस युग में बल मिला। भारतेंदु और उनके समकालीन कवियों ने यह संदेश दिया कि यदि भारतीय समाज को समृद्ध और सशक्त बनाना है, तो उसे अपनी निज भाषा का सम्मान करना चाहिए।
  4. साहित्यिक योगदान:

    • भारतेंदु हरिश्चंद्र के काव्य में काव्य शिल्प और भावों के साथ-साथ राष्ट्रीयता और सामाजिक जागरूकता की झलक मिलती है। उनकी रचनाएँ भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं।
    • भारतेंदु युग की कविताओं में, विशेष रूप से देशभक्ति और निज भाषा के विकास पर जोर दिया गया।

भारतेंदु युग की कुछ प्रमुख कविताएँ:

  1. कठिन सिपाही द्रोह अनल जल बल सों नासी:

    • इस कविता में कवि ने विभिन्न विपत्तियों और कठिनाइयों के बावजूद भारतीय वीरता को प्रस्तुत किया है। यह कविता संघर्ष और शौर्य की प्रतीक है।
  2. अँग्रेज राज सुख साज सबै है भारी:

    • इस कविता में ब्रिटिश शासन की नीतियों की आलोचना की गई है, जिसमें यह दर्शाया गया कि किस प्रकार से भारतीयों का शोषण किया जा रहा था।
  3. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल:

    • यह कविता भारतीय भाषा और संस्कृति के महत्व को समझाती है। कवि ने यह बताया कि निज भाषा की उन्नति ही समाज की और राष्ट्र की उन्नति का आधार है।
    • कविता का संदेश: "बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल" अर्थात अपनी भाषा के ज्ञान के बिना, किसी भी व्यक्ति का मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास स्थापित नहीं हो सकता।

निष्कर्ष:

भारतेंदु युग हिंदी साहित्य में एक नये युग की शुरुआत थी, जिसने न केवल साहित्यिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। यह युग भारतीय समाज की चेतना और जागरूकता के विकास का प्रेरणास्त्रोत बना और आगामी साहित्यिक आंदोलनों के लिए एक ठोस नींव तैयार की।

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