मलिक मुहम्मद जायसी (1492 ई. - ?) को हिंदी साहित्य में एक महान सूफी कवि माना जाता है। वे प्रेमाश्रयी (प्रेममार्गी) कवि थे, जिन्होंने सूफी विचारधारा को अपनी कविता में बहुत गहराई से उतारा। उनका काव्य जीवन और प्रेम के सूफी दृष्टिकोण का प्रतीक था। 'पद्मावत' उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है, जिसे अवधी भाषा में लिखा गया था। इसमें राजा रतनसेन और राजकुमारी पद्मावती के प्रेम की कथा है। इस काव्य के माध्यम से जायसी ने प्रेम को एक आध्यात्मिक अनुभव के रूप में चित्रित किया।
जायसी के विचार और उनके काव्य की विशेषताएँ:
प्रेम संबंधी विचार: जायसी के अनुसार प्रेम एक दिव्य और आत्मा को मोक्ष देने वाला अनुभव है। उनका प्रसिद्ध कथन है—
"मानुस पेम भयउ बैकुंठी। नाहिं त काह छार भरि मूठी।"
इसका अर्थ है कि प्रेम ही मानव को स्वर्ग (बैकुंठ) तक पहुँचा सकता है, अन्यथा जीवन में कोई वास्तविक मूल्य नहीं है। जायसी के अनुसार प्रेम केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप में सर्वोत्तम है। यह विचार सूफी प्रेम के सिद्धांत को ही दर्शाता है, जिसमें प्रेम को ईश्वर से मिलने का माध्यम माना जाता है।गुरु संबंधी विचार: जायसी का मानना था कि गुरु ही उस मार्ग को दिखाता है, जो आत्मा को सत्य तक पहुँचाता है। उनके अनुसार बिना गुरु के कृपा के कोई भी व्यक्ति ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर सकता।
"गुरु सुआ जेहि पंथ दिखावा, बिनु गुरु कृपा को निरगुन पावा।"
ब्रह्म संबंधी विचार: जायसी के अनुसार पद्मावती का प्रतीक ईश्वर है, जबकि रतनसेन का प्रतीक मनुष्य या जीव है। उनका यह दर्शन सूफी विचारधारा से प्रभावित था, जिसमें ईश्वर और जीव के बीच प्रेम को केंद्रित किया गया है। पद्मावती और रतनसेन के प्रेम की कथा, उनकी दृष्टि में आत्मा और परमात्मा के बीच का प्रेम ही है।
नागमती का वियोग: जायसी की कविता में नागमती के वियोग का वर्णन विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस कथा में प्रेमिका के वियोग में व्यक्ति का दुख और पीड़ा को चित्रित किया गया है। यह वियोग, रचनात्मक रूप से बारहमासा के रूप में व्यक्त किया गया है। बारहमासा एक काव्य रूप है जिसमें वर्ष के बारह महीनों में प्रेमिका के वियोग का वर्णन किया जाता है।
बारहमासा: बारहमासा एक विशेष काव्यशैली है जिसका प्रयोग जायसी ने वियोग के दुःख को व्यक्त करने के लिए किया। यह काव्य रूप विशेष रूप से प्रेम और वियोग के भावों को व्यक्त करता है, जिसमें साल के प्रत्येक महीने में प्रेमिका के वियोग का वर्णन किया जाता है। इस शैली का उपयोग जायसी ने नागमती के वियोग के वर्णन में किया।
पद्मावत और मसनवी शैली: ‘पद्मावत’ एक मसनवी शैली में लिखा गया काव्य है। मसनवी शैली सूफी काव्य की एक प्रमुख शैली है, जिसमें कथात्मक रूप से प्रेम और ईश्वर के साथ आत्मा के मिलन की कथा को व्यक्त किया जाता है। जायसी की काव्यशैली में प्रेम, भक्ति और सूफी दर्शन के गहरे विचार समाहित हैं।
निष्कर्ष:
जायसी ने अपनी काव्य रचनाओं में सूफी विचारधारा और प्रेम के आध्यात्मिक स्वरूप को प्रकट किया। उनकी ‘पद्मावत’ में प्रेम को केवल शारीरिक आकर्षण से अलग, एक आत्मिक और दिव्य अनुभव के रूप में चित्रित किया गया है। उनकी कविताएँ न केवल प्रेम के शारीरिक रूप को, बल्कि प्रेम को आत्मा और परमात्मा के मिलन के रूप में प्रस्तुत करती हैं। उनके विचार और काव्य शिल्प हिंदी साहित्य में सूफी दृष्टिकोण की महत्वपूर्ण परंपरा के रूप में देखे जाते हैं।4o mini
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