गुरुवार, 28 नवंबर 2024

हिंदी साहित्य का आरंभ और आदिकाल

 हिंदी साहित्य का आरंभ और आदिकाल

हिंदी साहित्य का आरंभ: हिंदी साहित्य की शुरुआत का समय निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसे लगभग सन् 1000 ई. के आसपास माना जाता है। इस काल से लेकर अब तक, लगभग एक हजार सालों में हिंदी साहित्य में लगातार बदलाव आए हैं। इन बदलावों के आधार पर हिंदी साहित्य को विभिन्न कालों में विभाजित किया गया है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, हिंदी साहित्य को निम्नलिखित कालों में विभाजित किया गया है:

  1. आदिकाल (वीरगाथाकाल): संवत् 1050 से 1375 तक (सन् 993 ई. से 1318 ई.)
  2. पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल): संवत् 1375 से 1700 तक (सन् 1318 ई. से 1643 ई.)
  3. उत्तरमध्यकाल (रीतिकाल): संवत् 1700 से 1900 तक (सन् 1643 ई. से 1843 ई.)
  4. आधुनिक काल (गद्यकाल): संवत् 1900 से अब तक (सन् 1843 ई. से अब तक)

आदिकाल (वीरगाथाकाल):

आदिकाल हिंदी साहित्य का प्रारंभिक काल है, जो 1050 से 1375 तक फैला हुआ था। इस काल में हिंदी साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव हुए और कई तरह की साहित्यिक रचनाएँ की गईं। इस समय के साहित्य को विशेष रूप से वीरगाथा काव्य, धार्मिक काव्य और स्वतंत्र काव्य के रूप में विभाजित किया जा सकता है।

  1. धार्मिक काव्य: इस समय में भारत में विभिन्न धार्मिक विचारों का प्रभाव था। प्रमुख धर्मों में सिद्ध, नाथ और जैन धर्म थे। इन धर्मों से जुड़ी धार्मिक रचनाएँ इस काल में मिलती हैं। इनमें कवियों ने अपने धर्म की शिक्षा दी और धार्मिक विचारों को प्रमुखता से व्यक्त किया। इन रचनाओं में दोहा, चरित काव्य, और चार्यापदों का प्रयोग किया गया।

    प्रमुख कवि और काव्य:

    • सिद्ध: सरहपा – दोहाकोश
    • जैन: स्वयंभू, मेरुतुंग, हेमचंद्र – पउम चरिउ (रामकथा), प्रबंध चिंतामणि
    • नाथ: गोरखनाथ – गोरखबानी

    जैन काव्य की विशेषताएँ:

    • जैन धर्म से प्रभावित रचनाएँ।
    • जैन महापुरुषों के जीवन पर आधारित काव्य, जैसे पउम चरिउ और जसहर चरिउ।
    • प्राकृत व्याकरण और काव्य-ग्रंथ जैसे प्रबंध चिंतामणि और सिद्धहेम शब्दानुशासन।
    • चौपई छंद और कड़वक बंध की रचनाएँ जैन कवियों ने दीं।
  2. वीरगाथा काव्य: इस समय भारत में एक केंद्रीय सत्ता की कमी थी और देश छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था। प्रत्येक राजा दूसरे राजा से लड़ने की कोशिश कर रहा था और राज्य का विस्तार चाहता था। इन कवियों ने राजाओं की वीरता का वर्णन किया, इसलिए इसे वीरगाथा काव्य कहा जाता है। इस काव्य का मुख्य विषय युद्ध और लड़ाइयाँ थीं।

    प्रमुख काव्य:

    • चंदबरदाई: पृथ्वीराज रासो
    • जगनिक: परमाल रासो
  3. स्वतंत्र काव्य: वे कवि जिन्होंने न तो धार्मिक काव्य लिखा और न ही वीरगाथा काव्य, उन्हें स्वतंत्र कवि कहा जा सकता है।

    प्रमुख कवि और काव्य:

    • विद्यापति (14वीं शताब्दी): उनके काव्य "कीर्तिलता", "कीर्तिपताका", और "पदावली" प्रसिद्ध हैं। "पदावली" में राधा और कृष्ण के प्रेम का वर्णन किया गया है।
    • अमीर खुसरो (14वीं शताब्दी): खुसरो ने फारसी में रचनाएँ कीं, लेकिन हिंदी में भी उनकी रचनाएँ महत्वपूर्ण हैं, जैसे उनकी पहेलियाँ, मुकरियाँ और दो सूक्तियाँ।

आदिकाल की सामान्य विशेषताएँ:

  1. इस काल में मुख्य रूप से वीर काव्य लिखे गए।
  2. कवि राजाओं के दरबारी कवि थे और उन्होंने अपने राजाओं की वीरता और प्रशंसा में रचनाएँ कीं।
  3. इस काल में शृंगार काव्य की रचनाएँ भी मिलती हैं, जैसे विद्यापति की 'पदावली' और नरपति नाल्ह की 'बीसलदेव रासो'।
  4. जैन और सिद्ध कवियों ने अपने धार्मिक विचारों का प्रचार करने के लिए साहित्य का उपयोग किया।
  5. आदिकाल में साहित्य की भाषा अपभ्रंश मिली-जुली हिंदी थी (डिंगल-पिंगल और अवहट्ट)।
  6. खुसरो की रचनाओं में और 'उक्तिव्यक्ति प्रकरण' से आधुनिक हिंदी भाषा का संकेत मिलता है।
  7. काव्य रूपों में चरित, दोहा, और पद का प्रयोग किया गया, जो बाद में बहुत लोकप्रिय हुए।

निष्कर्ष: आदिकाल को हिंदी साहित्य के प्रारंभिक दौर के रूप में देखा जाता है, जिसमें धार्मिक, वीर, और स्वतंत्र काव्य की रचनाएँ की गईं। इस काल में साहित्य का मुख्य उद्देश्य धार्मिक शिक्षा और राजा-महाराजाओं की वीरता का प्रचार था, लेकिन इसके साथ ही शृंगार काव्य और सामाजिक पहलुओं पर भी विचार किया गया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें