प्रकृति का सौंदर्य और उसकी अतुलनीयता हमेशा से मानव को प्रेरित करती आई है। हिमालय, पर्वतराज, न केवल अपनी ऊँचाई और विशालता के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी हरियाली, ऊबड़-खाबड़ शृंखलाएँ और नदियों का जाल भी इसे अद्वितीय बनाता है। शिवालिक शृंखला, जो हिमालय की तलहटी का हिस्सा है, सूखापन और कठोरता लिए हुए भी जीवन के संघर्ष की मिसाल है। इन सूखी पहाड़ियों पर, जहाँ हरियाली का नामोनिशान नहीं दिखता, कुछ वृक्ष अपनी अदम्य जीवन-शक्ति से खड़े हैं, जैसे मानो किसी अदृश्य स्रोत से जीवन रस खींच रहे हों।
इन वृक्षों में से एक छोटा-सा, ठिंगना-सा पेड़—कुटज—सिर्फ जीवन जीने का ही नहीं, बल्कि जीवन को संपूर्णता में आत्मसात करने का प्रतीक है। यह वृक्ष हमें सिखाता है कि जीवन में संघर्ष का सामना कैसे किया जाए। शिवालिक की सूखी भूमि पर खड़ा यह वृक्ष पाषाण की कठोरता को चुनौती देते हुए अपनी जड़ों से जल खींचता है और अपने फूलों से मुस्कुराता है। इसकी सरलता और मस्तमौला स्वभाव एक गहरी शिक्षा देता है।
कालिदास जैसे महान कवि ने भी इस कुटज को महत्व दिया। 'मेघदूत' में, रामगिरि पर यक्ष को जब मेघ का संदेशवाहक बनाया गया, तो उसने कुटज के फूलों का ही अर्घ्य दिया। यह प्रमाण है कि कुटज केवल एक पौधा नहीं, बल्कि उन संघर्षशील व्यक्तियों का प्रतिनिधि है, जो कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानते। रहीम ने भले ही इसे "अदना वृक्ष" कहा हो, परंतु इसका महत्व इसकी सरलता, सहनशीलता और जिजीविषा में छिपा है।
कुटज हमें जीने की एक अनोखी कला सिखाता है। यह जीवन के हर कठिन मोड़ पर यही संदेश देता है कि जो भी परिस्थितियाँ आएँ, उन्हें शान और आत्मविश्वास से स्वीकार करो। चाहे सुख हो या दुख, हर स्थिति में "हृदयेन अपराजित:" यानी अपराजित हृदय के साथ डटे रहो।
जीवन का अर्थ सिर्फ जीना नहीं है, बल्कि हर परिस्थिति में अपनी पहचान और स्वाभिमान बनाए रखना है। कुटज इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कैसे विपरीत परिस्थितियाँ भी आत्म-विश्वास और स्वाभिमान को झुका नहीं सकतीं। यह हमें सिखाता है कि संघर्ष से पीछे हटने के बजाय, उसे गले लगाओ और उससे जीतने की कला सीखो।
निष्कर्षतः, कुटज न केवल प्रकृति का एक सुंदर उदाहरण है, बल्कि जीवन में अपराजित रहने का एक प्रेरक प्रतीक भी है। यह हमें सिखाता है कि जीवन की हर कठिनाई का सामना आत्मबल और जीवटता से करना चाहिए, क्योंकि जहाँ संघर्ष है, वहीं वास्तविक जीवन का रस भी है।
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