अलंकार (Alankara) का अर्थ है "आभूषण"। यह शब्द संस्कृत से लिया गया है और साहित्य तथा काव्यशास्त्र में इसका उपयोग काव्य को सुंदर, आकर्षक और प्रभावशाली बनाने वाले अलंकरणों के लिए किया जाता है। अलंकार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
1. शब्दालंकार (Shabd Alankar):
इसमें काव्य के शब्दों की सुंदरता पर ध्यान दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य भाषा को मधुर, तालबद्ध और आकर्षक बनाना होता है। शब्दालंकार के प्रमुख उदाहरण हैं:
- अनुप्रास: एक ही अक्षर या ध्वनि का बार-बार प्रयोग।
उदाहरण: "चंचल चपल चमकती चितवन।" - यमक: एक ही शब्द का बार-बार प्रयोग, लेकिन अलग-अलग अर्थ में।
उदाहरण: "सागर गहरे, गहरे सागर।" - श्रुत्यनुप्रास: समान ध्वनि वाले शब्दों का प्रयोग।
उदाहरण: "सुधा सुधाकर सुधाकरें।"
2. अर्थालंकार (Arth Alankar):
इसमें काव्य के भाव और अर्थ की सुंदरता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है। इसके मुख्य प्रकार हैं:
- उपमा: किसी वस्तु की दूसरी वस्तु से तुलना करना।
उदाहरण: "चंद्रमा सा मुख।" - रूपक: किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के रूप में दिखाना।
उदाहरण: "वह साक्षात लक्ष्मी है।" - अतिशयोक्ति: किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना।
उदाहरण: "आंसुओं का सागर बहा।" - श्लेष: एक शब्द के दो अर्थों का प्रयोग।
उदाहरण: "नभ सा कोमल, नभ सा गहरा।"
अलंकार का महत्व
अलंकार काव्य को अधिक सजीव, प्रभावशाली और पाठकों के लिए रोचक बनाता है। यह भावों को गहराई और गहनता प्रदान करता है, जिससे पाठक को भावनात्मक और सौंदर्यात्मक आनंद मिलता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें