शनिवार, 23 नवंबर 2024

 


लागेउ माँह परै अब पाला। बिरह काल भएड जड़काला।

पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँँ।।
आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।
एहि मास उपजै रस मूलू। तूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू।
नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।
टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। बिरह पवन होइ मारैं झोला।
केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा।
तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई तन तिनुवर भा डोल।
तेहि पर बिरह जराइ कै चहै उड़ावा झोल॥


यह एक अवधी भाषा में लिखी गई सुंदर कविता है, जिसमें विरह की पीड़ा और जाड़े (सर्दी) के मौसम का गहरा और भावपूर्ण वर्णन किया गया है। इसमें विरहिन स्त्री अपने प्रियतम के बिना अपनी दशा को प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त कर रही है। आइए इसे थोड़ा विश्लेषण करें:

प्रमुख भाव:

  1. विरह की पीड़ा:

    • "लागेउ माँह परै अब पाला। बिरह काल भएड जड़काला।"
      यहाँ पाला (ठंड) और विरह को समान रूप में रखा गया है, जो शरीर और मन दोनों को जकड़ रहा है।
  2. शारीरिक और मानसिक अवस्था:

    • "पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँँ।"
      पहले शरीर को रुई से ढकने पर राहत मिलती थी, लेकिन अब यह ठंड (विरह) बढ़कर हृदय तक पहुँच गई है।
  3. प्रकृति और प्रेम का संबंध:

    • "आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।"
      केवल सूर्य के तपने (प्रेमी के आने) से ही इस ठंड से राहत संभव है।
  4. रस और सौंदर्य का क्षय:

    • "एहि मास उपजै रस मूलू। तूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू।"
      प्रेमी के बिना जीवन के रस (प्रेम) का ह्रास हो गया है।
  5. आंसुओं और प्रकृति का चित्रण:

    • "नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।"
      आँसुओं को ठंडे पानी की बूँदों के समान बताया गया है, जो और भी अधिक सर्दी का अहसास करा रही हैं।

कविता का संदेश:

यह कविता विरहिन के अंतर्मन की गहराई को बड़ी कोमलता और सजीवता के साथ दर्शाती है। प्रियतम के बिना हर सुख-दुख व्यर्थ लगता है और जीवन केवल शून्य रह जाता है।

व्याख्या : 

यह कविता अवधी में लिखी गई है और विरह (प्रेम-वियोग) के दर्द को बहुत ही सजीव और प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त करती है। इसमें सर्दी का वर्णन केवल मौसम का चित्रण नहीं है, बल्कि यह प्रेमी के बिना नायिका के अंतर्मन की ठंडक और खालीपन को दर्शाने का माध्यम है। आइए इसे विस्तार से व्याख्या करें:

पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या

  1. "लागेउ माँह परै अब पाला। बिरह काल भएड जड़काला।"

    • सर्दियों का मौसम है, और पाला (फ्रॉस्ट) हर तरफ छाया हुआ है। इस सर्दी को नायिका अपने विरह की पीड़ा के रूप में महसूस करती है।
    • "बिरह काल" यहाँ विरह को एक घातक समय के रूप में प्रस्तुत करता है, जो मन और शरीर को जकड़ लेता है।
  2. "पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँँ।"

    • शुरुआत में नायिका अपने शरीर को रुई (कपड़े) से ढकने की कोशिश करती है, लेकिन यह ठंड (विरह) इतना गहरा है कि यह हृदय तक पहुंच जाता है।
    • ठंड केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक और भावनात्मक भी है।
  3. "आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।"

    • नायिका कहती है कि यह सर्दी तभी खत्म होगी जब "सूर" (सूरज) यानी उसका प्रिय वापस आएगा।
    • यहाँ सूरज प्रेमी का प्रतीक है, जिसकी उपस्थिति जीवन को गर्मी और राहत दे सकती है।
  4. "एहि मास उपजै रस मूलू। तूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू।"

    • इस ठंड के मौसम में जीवन का रस और जड़ें (मूल) सूख रही हैं।
    • नायिका अपने प्रेम को "भंवरा" (मधुमक्खी) और खुद को "फूल" के रूप में देखती है, जो विरह के कारण मुरझा रहा है।
  5. "नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।"

    • नायिका के आँसू बर्फीले पानी की तरह टपकते हैं, जो शरीर को और अधिक ठंडा कर देते हैं।
    • आँसुओं की यह ठंड विरह की जलन को और बढ़ा देती है।
  6. "टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। बिरह पवन होइ मारैं झोला।"

    • आँसुओं की बूँदें बर्फ की ओलों के समान महसूस होती हैं।
    • विरह की पीड़ा हवा के थपेड़ों जैसी लगती है, जो और अधिक तकलीफ देती है।
  7. "केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा।"

    • नायिका पूछती है कि किसके लिए वह सिंगार करे या गहने पहने?
    • उसके प्रिय के बिना सिंगार और गहनों का कोई महत्व नहीं।
  8. "तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई तन तिनुवर भा डोल।"

    • नायिका कहती है कि बिना अपने प्रिय के उसका शरीर कमजोर हो गया है, मानो बांस के समान हिल रहा हो।
  9. "तेहि पर बिरह जराइ कै चहै उड़ावा झोल।"

    • विरह की आग इस कमजोर शरीर को जला रही है और मानो सब कुछ खत्म कर देना चाहती है।

सारांश

यह कविता सर्दियों के कठोर मौसम के माध्यम से विरह और प्रेम-वियोग की पीड़ा को व्यक्त करती है। नायिका के लिए हर चीज़ ठंडी, सूनी और बेरंग हो गई है। प्रियतम का अभाव न केवल भावनात्मक बल्कि शारीरिक रूप से भी उसे कमजोर कर रहा है।

कविता में प्रकृति के सुंदर और सजीव प्रतीकों का उपयोग इसे और भी गहन और हृदयस्पर्शी बनाता है। यह प्रेम और विरह के अनुभव को सार्वभौमिक और कालातीत रूप में प्रस्तुत करती है।

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