गीरिश कर्नाड: जीवन और साहित्य
गीरिश कर्नाड (1938-2019) आधुनिक भारतीय साहित्य, रंगमंच और सिनेमा के उन स्तंभों में से एक थे जिन्होंने भारतीय नाट्य परंपरा और समकालीन लेखन को एक नई दिशा दी। कर्नाड न केवल एक महान नाटककार थे, बल्कि एक कुशल अभिनेता, निर्देशक और सामाजिक विचारक भी थे। उनकी रचनाएँ भारतीय समाज के जटिल मुद्दों, मानवीय भावनाओं और परंपरा तथा आधुनिकता के द्वंद्व को गहराई से उजागर करती हैं। यह लेख उनके जीवन और साहित्य पर केंद्रित है।
जीवन परिचय
गीरिश कर्नाड का जन्म 19 मई 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था। उनके पिता रघुनाथ कर्नाड एक डॉक्टर थे और माँ कृष्णाबाई एक शिक्षिका थीं। बचपन से ही गिरीश ने विभिन्न संस्कृतियों का अनुभव किया, जिसने उनके लेखन और सोच को गहराई प्रदान की। उन्होंने धारवाड़ के कर्नाटक विश्वविद्यालय से गणित और सांख्यिकी में स्नातक किया। बाद में वे रोड्स स्कॉलरशिप के तहत इंग्लैंड गए और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
नाट्य साहित्य में योगदान
गीरिश कर्नाड ने अपने नाटकों के माध्यम से भारतीय नाट्य परंपरा को आधुनिक संदर्भों से जोड़ा। उनके नाटक मुख्यतः मिथकों, लोककथाओं और ऐतिहासिक पात्रों पर आधारित हैं, लेकिन इनमें समकालीन सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याओं का गहरा विश्लेषण भी मिलता है।
मुख्य नाटक
'ययाति' (1961)
यह उनका पहला नाटक था, जो महाभारत के ययाति प्रसंग पर आधारित है। इसमें उन्होंने मानव की स्वार्थपूर्ण इच्छाओं और जिम्मेदारियों के द्वंद्व को दर्शाया।'तुगलक' (1964)
यह कर्नाड का सबसे प्रसिद्ध नाटक है, जिसमें दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक की कहानी को दर्शाया गया है। इसमें सत्ता, पागलपन, और आदर्शों के बीच संघर्ष को गहराई से प्रस्तुत किया गया है।'हयवदन' (1971)
कर्नाड का यह नाटक कन्नड़ लोककथा और थॉमस मान की 'द ट्रांसपोज्ड हेड्स' से प्रेरित है। यह नाटक पहचान, आत्मा और शरीर के द्वंद्व को उजागर करता है।'नागमंडल' (1988)
यह नाटक एक लोककथा पर आधारित है और विवाह, विश्वासघात और महिला की इच्छाओं पर चर्चा करता है।'अग्नि और बरखा' (1995)
यह नाटक ऋग्वेद की कहानियों से प्रेरित है। इसमें धर्म, जाति और समाज के सवाल उठाए गए हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ
गीरिश कर्नाड के नाटक कई दृष्टियों से अद्वितीय हैं।
मिथकों और लोककथाओं का आधुनिक संदर्भ
कर्नाड ने अपने नाटकों में भारतीय मिथकों और लोककथाओं का इस्तेमाल करके समकालीन मुद्दों को उजागर किया। उदाहरण के लिए, 'हयवदन' में उन्होंने पहचान और अस्तित्व के सवाल उठाए।भाषा और संवाद
कर्नाड ने अपने नाटकों में सरल और प्रभावी भाषा का उपयोग किया। उन्होंने कन्नड़ में लिखा, लेकिन उनके नाटक भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में अनुवादित होकर प्रसिद्ध हुए।नारीवादी दृष्टिकोण
उनके नाटकों में महिलाओं के मुद्दों और उनकी भावनाओं को प्रमुखता दी गई है। 'नागमंडल' इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।समाज और राजनीति
'तुगलक' जैसे नाटकों में उन्होंने समाज और राजनीति के जटिल पहलुओं को उठाया।
सिनेमा में योगदान
गीरिश कर्नाड ने सिनेमा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे एक प्रतिभाशाली अभिनेता, निर्देशक और पटकथा लेखक थे।
अभिनय
उन्होंने कई हिंदी, कन्नड़, और मराठी फिल्मों में अभिनय किया। 'मंथन', 'स्वामी', 'निशांत', 'गोधूलि' और 'इकबाल' जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को सराहा गया।निर्देशन
उन्होंने 'वंशवृक्ष', 'काडू' और 'उत्सव' जैसी फिल्मों का निर्देशन किया।पटकथा लेखन
कर्नाड ने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी। उनकी पटकथाएँ सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर केंद्रित होती थीं।
पुरस्कार और सम्मान
गीरिश कर्नाड को उनके साहित्यिक और फिल्मी योगदान के लिए अनेक पुरस्कार मिले।
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1972)
- ज्ञानपीठ पुरस्कार (1998)
- पद्म श्री (1974)
- पद्म भूषण (1992)
- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
विचारधारा और सामाजिक योगदान
कर्नाड केवल एक साहित्यकार नहीं थे, बल्कि एक सामाजिक चिंतक भी थे। वे धर्मनिरपेक्षता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और रूढ़ियों के खिलाफ आवाज उठाई।
निष्कर्ष
गीरिश कर्नाड भारतीय साहित्य और कला के एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपनी लेखनी और कर्म से समाज को जागरूक किया। उनके नाटक, सिनेमा और विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। वे साहित्य और कला के माध्यम से हमें सोचने और समझने की नई दृष्टि प्रदान करते हैं। उनकी रचनाएँ और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।