नयी कविता का जन्म प्रयोगवादी कविता से हुआ, और इस आंदोलन में अज्ञेय का प्रमुख योगदान रहा। अज्ञेय ने स्वयं 'नयी कविता' पद का प्रयोग किया था और इसे प्रयोगवाद से अलग बताया था। उनका मानना था कि तारसप्तक के कवि ही 'नये कवि' हैं, जिनके माध्यम से नयी कविता का प्रसार हुआ।
1951 और 1959 में प्रकाशित सप्तक और तारसप्तक में काव्य रचनाओं ने नयी कविता के लिए मार्ग प्रशस्त किया। इसके विकास में डॉ. जगदीश गुप्त और रामस्वरूप चतुर्वेदी द्वारा संपादित 'नयी कविता' पत्रिका का प्रकाशन एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसे 1954 में शुरू किया गया। इस पत्रिका के प्रकाशन को नयी कविता आंदोलन की शुरुआत माना जाता है। इसके अलावा, अज्ञेय द्वारा संपादित 'प्रतीक' पत्रिका का भी नयी कविता के विकास में अहम योगदान था।
नयी कविता में कवियों का दृष्टिकोण बहु-आयामी था। इसमें प्रगतिशील और प्रयोगशील दोनों धाराओं का समावेश हुआ, जैसे कि मुक्तिबोध, शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती आदि ने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से इसे और आगे बढ़ाया।
नयी कविता की कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- वाद-मुक्त कविता: नयी कविता किसी विशेष वाद या विचारधारा से बंधी नहीं है।
- अनिश्चितता और संशय की प्रवृत्ति: यह कविता दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की सामाजिक और मानसिक स्थिति का प्रतिबिंब है।
- मानव की लघुता: इसमें मानव को छोटे और व्यक्तिगत रूप में दर्शाया गया है, न कि विराट् या आदर्श रूप में।
- व्यक्तिवाद और समाज की टकराहट: यहाँ व्यक्तिवाद की प्रवृत्ति देखने को मिलती है, साथ ही व्यक्ति और समाज के बीच संघर्ष भी दिखाई देता है।
- नये विम्ब और प्रतीक: कवियों ने नये प्रकार के विम्बों और प्रतीकों का प्रयोग किया है, जो उनके दृष्टिकोण को और अधिक स्पष्ट करते हैं।
इस तरह, नयी कविता का विकास प्रयोगवादी और प्रगतिवादी काव्य धारा के मिश्रण के रूप में हुआ और इसने भारतीय कविता को एक नयी दिशा दी।