निम्नलिखित में से
किसी एक पद्यांश को ध्यान पूर्वक पढिए :
और
जिन्हें इस शान्ति-व्यवस्था में सुख-भोग सुलभ है,
उनके
लिये शान्ति ही जीवन -सार, सिद्धि दुर्लभ
है।
पर, जिनकी अस्थियाँ चबाकर,शोणित पी कर तन का,
जीती
है यह शान्ति, दाहसमझो कुछ उनके मन का।
शांति नहीं तब तक, जब तक सुख-भाग न सबका सम
हो।
नहीं
किसी को बहुत अधिक हो, नहीं किसी को कम हो।
न्याय
शान्ति का प्रथम न्यास है जब तक न्याय न आता,
जैसा
भी हो महल शान्ति का सुदृढ़ नहीं रह पाता।
स्वत्व
माँगने से न मिले, संघात पाप हो जाएँ।
बोलो धर्मराज, शोषित वे जिएँ या कि मिट जाएँ?
न्यायोचित अधिकार माँगने से न मिले, तो लड़
के
तेजस्वी छीनते समय को, जीत, या कि खुद मर के।
किसने कहा पाप है? अनुचित
स्वत्व-प्राप्ति-हित लड़ना?
उठा न्याय का खड्ग समर में अभय मारना-मरना?
·
निम्नलिखित में प्रश्नों का निर्देशानुसार उत्तर
दीजिए —
(क) शांति
किसके लिए सुलभ है ?
(ख) इस
कविता में किसके हृदय के दाह की चर्चा की गई है ?
(ग) कवि
के अनुसार शांति के लिए क्या आवश्यक शर्त है ?
(घ) शांति
की नींव क्या है ?
(ङ) शांति
के लिए कवि ने कौन-सा रूपक गढ़ा है ?
(च) तेजस्वी
किस प्रकार समय को छीन लेते हैं ?
(छ) न्यायोचित
अधिकार के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए?
(ज) कृष्ण
युधिष्ठिर को युद्ध के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं ?
अथवा
नीड़
का निर्माण फिर-फिर नेह का आह्वान फिर-फिर
वह
उठी आँधी कि नभ में छा गया सहसा अँधेरा
धूलि-धूसर
बादलों ने भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा
दिन हो गया फिर रात आई और काली,
लग
रहा था अब न होगा, इस निशा का फिर सवेरा,
रात
के उत्पात-भय से भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु
प्राची से उषा की मोहिनी मुसकान फिर-फिर
नीड़
का निर्माण फिर-फिर नेह का आह्वान फिर-फिर ।
वह
चले झोंके कि काँपे, भीम कायावान भूधर,
जड़
समेत उखड़-पुखड़कर गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित घोंसलो पर क्या न बीती,
डगमगाए
जबकि कंकड़, ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल
आशा के विहंगम, किस जगह पर तू छिपा था,
जो
गगन पर चढ़ उठाता गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़
का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!
·
निम्नलिखित में प्रश्नों का निर्देशानुसार उत्तर
दीजिए —
(क)
आँधी तथा बादल किसके प्रतीक हैं ? इनके
क्या परिणाम होते हैं ?
(ख)
कवि निर्माण का आह्वान क्यों करता है?
(ग)
कवि किस बात से भयभीत है और क्यों?
(घ)
उषा की मुसकान मानव-मन को क्या प्रेरणा देती
है?
(ङ)
उसके झोंको से कौन काँप जाता है ?
(च)
कविता में तिनके के घोसलों से कवि का क्या
आशय है ?
(छ)
कवि आशा का आह्वान क्यों करता है ?
(ज)
‘वह चले झोंके कि काँपे’ में कवि का वह से क्या आशय है ?
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