संवत् 1900 (सन् 1843 ई. के बाद) से अब तक
मंगलवार, 4 अगस्त 2020
सोमवार, 6 जुलाई 2020
पूर्वमध्यकाल : भक्तिकाल
संवत्
1375 से संवत् 1700 तक
(
सन् 1318 ई. से सन्1643 ई. )
मध्य का अर्थ है- बीच । मध्यकाल आदिकाल और आधुनिक काल के बीच का काल है ।
इसके दो भाग हैं— 1. पूर्वमध्यकाल 2. उत्तरमध्यकाल । पूर्व मध्यकाल का ही दूसरा नाम भक्तिकाल है । यह काल
भक्ति-साहित्य के लिए प्रसिद्ध है ।
भक्ति की शुरुआत दक्षिण भारत में हुई । रामानंद
ने इसे उत्तर भारत ले गए । उनका संबंध तमिल आलवारों से था । आलवार वैष्णव थे । रामनंद
का संबंध इन्हीं आलवारों से माना जाता है । हिंदी के भक्त कवि रामानंद की
शिष्य-परंपरा में हैं ।
भक्ति काव्य की
विशेषताएँ : ईश्वर से प्रेम करने को भक्ति कहते हैं ।
भक्ति काल में भक्ति को विषय बनाकर कविताएँ लिखी गईं। भक्ति काव्य का
क्षेत्र-विस्तार पूरे भारत में था। भक्ति काव्य
ने देशी भाषाओं को महत्व दिया। हिन्दी के भक्ति काव्य में ब्रजभाषा, अवधी, राजस्थानी आदि बोलियों में कविताएँ लिखी गईं।
इन कविताओं में भक्ति के बाद सबसे अधिक सामाजिक समानता को महत्व दिया। भक्ति काल
को हिंदी कविता का स्वर्ण युग कहा जाता है।
भक्ति दो प्रकार की होती है—
भक्ति
सगुण भक्ति निर्गुण
भक्ति
कृष्ण भक्ति राम भक्ति ज्ञानाश्रयी प्रेमाश्रयी
(संत
कवि) (सूफी कवि)
गुरुवार, 11 जून 2020
हिंदी साहित्य का आरंभ
हिंदी
साहित्य का आरंभ
हिंदी साहित्य की
शुरुआत की एक निश्चित तिथि नहीं बताई जा सकती, लेकिन इसका आरंभ
सन् 1000 ई. के आसपास मानी जा सकती है ।
तब से लेकर अब तक लगभग एक हजार साल में हिंदी का साहित्य लगातार आगे बढ़ता रहा है ।
इसमें कई तरह के बदलाव आये । इन बदलावों के आधार पर हिंदी साहित्य को अलग-अलग
कालों में बाँटा गया है । इन कालों की सही समय-सीमा और नामकरण को लेकर विद्वानों
अलग-अलग विचार हैं । इनमें आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल-विभाजन अधिक मान्य है ।
उनके अनुसार—
1.
आदिकाल (वीरगाथाकाल) : संवत्
1050 से 1375 तक ( सन् 993 ई. से सन्1318 ई. )
2.
पूर्वमध्यकाल
(भक्तिकाल) : संवत् 1375 से संवत् 1700 तक
( सन् 1318 ई. से सन्1643 ई. )
3.
उत्तरमध्यकाल ( रीतिकाल) :
संवत् 1700 से संवत् 1900 तक ( सन् 1643 ई. से
सन् 1843 ई. )
4.
आधुनिक काल ( गद्यकाल) :
संवत् 1900 से अब तक ( सन् 1843 ई. से
अबतक)
आदिकाल (वीरगाथाकाल )
संवत् 1050 से 1375
आदिकाल
हिंदी भाषा में साहित्य लिखने की शुरुआत का समय है । हिंदी भाषा से पहले साहित्य
की भाषा अपभ्रंश थी। इसमें आठवीं शताब्दी के आस पास से साहित्य-रचनाएँ मिलने लगती
हैं । चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसे ‘पुरानी हिंदी’ कहा है । लेकिन हिंदी साहित्य के आदिकाल का वास्तविक समय संवत् 1050 से
1375 तक माना जाता है। इस समय तीन तरह के साहित्य लिखे गये –
1.
धार्मिक काव्य
2.
वीरगाथा काव्य
3.
स्वतंत्र काव्य
धार्मिक
काव्य – इस समय भारत में कई तरह के धार्मिक विचार थे ।
इनमें से सिद्ध, नाथ और जैन तीन मुख्य थे। आदिकालीन हिंदी
में इन तीनों से जुड़ी धार्मिक रचनाएँ मिलती हैं । इनमें साहित्य की जगह धार्मिक
विचार अधिक प्रभावी हैं । इन कवियों ने
अपनी कविताओं में अपने-अपने धर्मों की शिक्षा दी है। ये धार्मिक विचार की कविताएँ
हैं। ये विचार दोहा, चरित काव्य और चार्यापदों में रचे गए
हैं । इनमें से मुख्य कवि हैं—
धार्मिक मत |
कवि |
काव्य |
सिद्ध |
सरहपा |
दोहाकोश |
जैन |
स्वयंभू मेरुतुंग हेमचंद्र |
पउम चरिउ (राम-कथा) प्रबंध चिंतामणि प्राकृत व्याकरण |
नाथ |
गोरख नाथ |
गोरखबानी |
जैन
काव्य की विशेषताएँ :
1.
जैन काव्य जैन धर्म से
प्रभावित है ।
2.
जैन धर्म के महापुरुषों के
जीवन को विषय बनाकर चिरित काव्य लिखे गए; जैसे- पउम
चरिउ, जसहर चरिउ, करकंडु चरिउ,भविसयत कहा आदि ।
3.
जैन कवियों ने व्याकरण-ग्रंथ
भी लिखे ; जैसे- प्राकृत व्याकरण, प्रबंधचिंतामणि, सिद्धहेम शब्दानुशासन आदि ।
4.
कड़वक बंध रचनाएँ और चौपई छंद
जैन कवियों की देन है ।
5.
हिंदी का पहला बारहमासा
वर्णन जैन साहित्य में मिलता है ।
वीरगाथा
काव्य– इस समय भारत में एक केंद्रीय सत्ता की कमी
थी। देश कई छोटे-छोटे राज्यों में बँटा था और प्रत्येक राजा दूसरे राजा से राज्य
छीनना चाह रहा था और अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था। इसलिए वे आपस में लड़
रहे थे। इन राजाओं के राज्य में रहने वाले कवियों ने अपने राजाओं की वीरता का
वर्णन किया है । इस लिए इन्हें वीरगाथा
काव्य कहा जाता है। इन कविताओं का विषय लड़ाइयों का वर्णन है । चंदबरदाई का ‘पृथ्वीराज रासो’ और जगनिक का ‘परमाल
रासो’ इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध है।
स्वतंत्र
काव्य – जिन कवियों ने धार्मिक काव्य और
वीरगाथा काव्य नहीं लिखे । उनकी कविताएँ इन दोनों प्रकार के काव्यों से अलग हैं , उन्हें स्वतंत्र कवि कहा जा सकता है; जैसे
विद्यापति और अमीर खुसरो ।
1.
विद्यापति
(14 वीं शताब्दी) — इनके तीन प्रसिद्ध काव्य ‘कीर्तिलता’, ‘कीर्तिपताका’ और ‘पदावली’ हैं। कीर्तिलता और कीर्ति पताका का संबंध
राजा कीर्ति सिंह से है। विद्यापति उन्हीं के यहाँ रहते थे। पदावली में राधा और
कृष्ण के प्रेम का वर्णन है। इसमें उन दोनों का प्रेम एक सामान्य युवक और युवती के
प्रेम जैसा है। विद्यापति के इस काव्य का सबसे अधिक महत्त्व है।
2.
अमीर खुसरो
(14 वीं शताब्दी) — खुसरो फारसी के कवि
थे। उन्होंने हिंदी में भी रचनाएँ कीं। उनकी पहेलियाँ, मुकरियाँ, दो सुखने प्रसिद्ध हैं। खुसरो की रचनाओं की भाषा आधुनिक काल की हिंदी के करीब
है। इसलिए इनका ऐतिहारिक महत्त्व है।
3.
अद्दहमाण / अब्दुल रहमान (13वीं
शताब्दी)- संदेश रासक (शृंगार काव्य)
4.
रोडा- राउड
बेलि (शृंगार काव्य)
5.
लक्षमीधर - प्राकृत
पैंगलम्
आदिकाल
की सामान्य विशेषताएँ :
1. इस
काल में वीर-काव्य लिखे गए।
2. इस
काल के कवि राजाओं के दरबारी कवि थे और उन्होंने अपने राजाओं की प्रशस्ति में
कविताएँ लिखीं।
3. आदिकाल
में वीर के साथ-साथ कुछ शृंगार (प्रेम) की रचनाएँ की भी मिलती हैं; जैसे- नरपति नाल्ह की ‘बीसलदेव रासो’
और विद्यापति की ‘पदावली’।
4. जैन
और सिद्ध कवियों ने अपने धार्मिक विचार के प्रचार के लिए साहित्य का आधार बनाया
है। ‘जसहर चरिउ’, ‘रिठ्ठणेमि चारिउ’ आदि ।
5. इन
रचनाओं की भाषा अपभ्रंश मिली-जुली हिंदी (डिंगल- पिंगल
और अवहट्ट) है।
6. खुसरो की रचनाओं तथा ‘उक्तिव्यक्ति प्रकरण’ से आधुनिक हिंदी भाषा का
पूर्वानुमान मिलने लगता है।
7. चरित, दोहा और पद— जैसे नए काव्य-रूप का प्रयोग किया, जो
बाद में अधिक लोकप्रिय हुए ।