रविवार, 1 नवंबर 2020

प्रयोगवादी कविता

(1943-1954)

सप्तक

अज्ञेय ने अपने समय के सात नए कवियों की कविताओं के चार अलग-अलग संकलन संपादित किए थे । इन्हें सप्तक कहा जाता है।  तारसप्तक इनमें से पहला  है । 

    प्रयोगवाद की शुरुआत तार-सप्तक के प्रकाशन के साथ मानी जाती है । इसमें सात कवियों की कविताएँ संकलित थीं। तार-सप्तक संपादन सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय ने किया था । यह 1943 में प्रकाशित हुआ । इस पुस्तक की भूमिका में उन्होंने लिखा था कि इस तार-सप्तक के कवि राही नहीं राहों के अन्वेषी हैं अर्थात् ये सभी नए कवि थे जो कविता की दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए नई तरह की कविता लिखना चाहते थे । कविता के इस आंदोलन को प्रतीक (1947-1952) पत्रिका से बल मिला और दूसरा सप्तक ने इसे और मजबूत किया ।  

 प्रयोगवाद शब्द का अर्थ है, प्रयोग को महत्त्व देने वाली कविता । इस कविता में भाव, भाषा, शिल्प आदि सभी में नए प्रयोग किए गए । प्रयोगवादी कवियों ने पहले की हिंदी कविता को पुरानी और रूढ़ कहते हुए उसके भाव, प्रतीक, उपमान, और भाषा सबको नकार दिया । प्रयोगवादी  कवियों ने यह कहा कि ये सब पुराने पड़ चुके हैं और कविता में नई भाषा, नए उपमानों और नए प्रतीकों के प्रयोग की जरूरत है ।  प्रयोगवादी कविता व्यक्तिवादी मानी जाती है । इसपर योरोपीय चिंतन का प्रभाव था । इसका जन्म वाद (विचारधारा-केंद्रित कविता) के विरोध से हुआ । तारसप्तक के कई कवि मार्क्सवादी जीवन-दर्शन से प्रभावित थे, लेकिन उनमें से प्रायः ने प्रयोग के लिए विचारधारा छोड़ दी। यह एक तरह से अ-राजनीतिक कविता है ।

 

प्रयोगवाद की प्रवृत्तियाँ

1.      प्रयोगवाद पर आधुनिकतावाद का प्रभाव है ।

2.      प्रयोगवादी कविता में व्यक्तिवाद की प्रमुखता है । इसने व्यक्तिगत जीवन के यथार्थ की बात की ।

3.      इसने भावना की जगह बुद्धि को महत्त्व दिया ।

4.      यह मध्यवर्गीय जीवन की जटिलता का काव्य है।

5.      इसमें कहीं-कहीं संदेह, अनास्था और अनिश्चितता का स्वर भी सुनाई पड़ता है; जो द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों का प्रभाव है ।

6.      प्रयोगवादी कविता में पुराने उपमानों और प्रतीकों की जगह नए प्रतीक और उपमान रचे गए ।

7.      प्रयोगवादी कविता की भाषा-शैली में विविधता है । भाषा-शैली की एकरूपता को प्रयोगवादी कवि रूढ़ि और प्रयोग-विरोधी मानते हैं ।

 

प्रयोगवाद को तीन पदों (Terms) से पहचाना जा सकता है— 1. व्यक्ति को महत्त्व, 2. प्रयोगशीलता और 3. विविधता ।

1.       व्यक्ति को महत्त्व

यह दीप अकेला स्नेह भरा

है गर्व भरा मदमाता, पर

इसको भी पंक्ति को दे  दो ।

                               —अज्ञेय 

 प्रयोगवादी कवि व्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं । उनके अनुसार मनुष्य की सामाजिक के साथ-साथ एक अपनी निजी पहचान भी है । प्रयोगवादी कविताएँ मनुष्य की निजी पहचान (अस्तित्व) की कविताएँ हैं।


2.      प्रयोगशीलता

प्रयोगवादी कवि

गजानन माधव मुक्तिबोध’, रामविलास शर्मा, नेमिचंद्र जैन, गिरजा कुमार माथुर, भारत भूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे और सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

 प्रयोगवादी कवियों ने कविता के पुराने पैटर्न को अस्वीकार कर दिया और भाव, विचार, उपमान, प्रतीक, भाषा तथा शिल्प आदि में बदलाव की बात की । उन्होंने कहा कि इन सभी में नये प्रयोग किये जाने चाहिए ।  इसीलिए इन कवियों को प्रयोगवादी कवि कहा जाता है ।

3.      विविधता

 ये कवि प्रयोगवादी हैं । इसलिए कविता के किसी एक पैटर्न में नहीं बँधते । भाव और शिल्प दोनों में अलग-अलग कवियों की कविताओं में विविधता है । यहाँ तक की एक ही कवि की अलग-अलग कविता की भाषा भी अलग अलग है ।

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

जायसी

 

जायसी सूफी (प्रेमाश्रयी/प्रेममार्गी) कवि थे । उनका पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी था । उनका जन्म सन्1492 में जायस नगर में हुआ था । पद्मावतउनकी प्रसिद्ध पुस्तक है । पद्मावतमें राजा रतनसेन और पद्मावती की प्रेम-कथा  है । रतन सेन चित्तौड़ का राजा था और पद्मावती सिंघल द्वीप (श्रीलंका) की राजकुमारी।पद्मावतअवधी बोली में लिखी गई है।

जायसी के विचार :

1.      प्रेम संबंधी विचारमानुस पेम भयउ बैकुंठी। नाहिं त काह छार भरि मूठी।

2.      गुरु संबंधी विचारगुरु सुआ जेहि पंथ दिखावा बिनु गुरु कृपा को निरगुन पावा।

3.      ब्रह्म संबंधी विचार पद्मावती ईश्वर का प्रतीक है और रतनसेन जीव (मनुष्य) का।

4.      जायसी नागमती का वियोग वर्णन के लिये प्रसिद्ध हैं।

5.      नागमती के वियोग वर्णन में बारहमासा का प्रयोग है।

6.      बारहमासा वियोग के दुःख को बताने वाला एक काव्य है।

7.      पद्मावत मसनवी (सूफी) शैली का काव्य है ।

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

कबीर


 कबीर

संत कबीर का जन्म बनारस में संवत् 1455 (1398 ई.) में हुआ था । इन्हें नीरू और नीमा नाम के जुलाहा दंपति ने पाला था । कबीर जुलाहे का काम करते थे । वे ज्ञानमार्गी/ज्ञानश्रयी कवि थे । कबीर अशिक्षित (मसि कागद छूयो नहीं  कलम गही नहिं हाथ) । 

कबीर की वाणी का संकलन बीजकमें है । इसके तीन खंड हैं1. साखी, 2. सबद 3. रमैनी।

कबीर के विचार  :

1.      कविता के बारे में – तुम जिन जानो गीत है वह निज ब्रह्म विचार।

2.      निर्गुण ब्रह्म के बारे में  जाके मुख माथा नहीं नाहीं रूप कुरूप।

पुहुप बास तैं पातरा ऐसो तत्त अनूप ।

3.      ब्रह्म को प्रेमी माना और अपने को प्रेयसी हिरि मोरे पिउ मैं राम की बहुरिया।

4.      प्रेम को महत्व कबीर यह घर प्रेम का खाला का घर नहिं।

5.      मूर्ति-पूजा का विरोध  पाहन पूजे हरि मिलें तौ मैं पूजूँ पहार।

6.      हिंदू-मुस्लिम एकता  हिंदू मुए राम कहि मुसलमान खुदाई।

7.      गुरु का महत्व गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागूँ पाँय।