प्रगतिशील
कविता
‘प्रगति’ का सामान्य अर्थ है, आगे बढ़ना। ‘वाद’ का अर्थ है सिद्धांत या विचार । प्रगतिवाद का
अर्थ है— आगे बढ़ने का सिद्धांत । साहित्य अपने स्वभाव से प्रगतिशील होता है, लेकिन यहाँ प्रगतिशीलता का अर्थ एक खास विचारधारा के साथ आगे बढ़ने से है ।
वह विचारधारा ‘मार्क्सवाद’ है।
प्रगतिशील कविता पर कार्ल मार्क्स के विचारों का प्रभाव था। इस कविता की शुरुआत
सन् 1936 ई. से मानी जाती है।
पहली बार लंदन में सन् 1935 में ‘इंडियन प्रोग्रेसिव राइटर्स एशोशिएन’ की स्थापना की
गई । 10 अप्रैल, सन् 1936 ई. को लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ
की स्थापना हुई। इसकी अध्यक्षता हिंदी के लेखक प्रेमचंद ने की। यहाँ पहले-पहल ‘हिंदी साहित्य में प्रगतिशीलता’ पर विचार हुआ। बाद
में रवींद्रनाथ ठाकुर, जवाहर लाल नेहरू और श्रीपाद डांगे भी
इसके इसके सभापति बने।
प्रगतिशील
कविता की शुरुआत प्रगतिशील लेखक संघ के लखनऊ अधिवेशन के बाद से ही मानी जाती है।
इसकी प्रवृत्तियाँ (विशेषताएँ) हैं—
1. प्रगतिशील कविता प्रगतिशील जीवन मूल्यों की कविता है । यह पुरानी रूढ़ियों को नहीं मानती। यह मार्क्सवादी समाज-दृष्टि और विश्वदृष्टि से प्रभावित कविता है ।
2. प्रगतिशील कविता में कल्पना की जगह यथार्थ ने ले लिया ।
3. प्रगतिशील कविता में किसानों और मजदूरों की बात की गई।
4. प्रगतिशील कविता पूँजीवाद और सामंतवाद का लोगों के विरोध है ।
5. इस कविता में गरीबों, मजदूरों और निम्नवर्गीय लोगों के हित की बात की गई ।
6. यहाँ मनुष्य के सहज और सच्चे सौंदर्य की कविताएँ लिखी गई, जैसे— छोटे बच्चे की मुस्कान, दाम्पत्य जीवन की सुंदरता, किसानों और मजदूरों के काम की सुंदरता।
7. इन कविताओं में वर्तमान व्यवस्था पर व्यंग्य किया गया है।
8. प्रकृति की सहज सुंदरता का वर्णन किया गया। छायावादी कविता की तरह कल्पना की अधिकता नहीं है।
9. प्रगतिशील कविता सहज मानवीय प्रेम की कविताएँ लिखी गई हैं। उनका प्रेम एकांतिक न होकर सामाजिक है।
10. यह कविता समाजवादी देशों का समर्थन करती है।
प्रमुख कवि— नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, त्रिलोचन, गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’, शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ आदि।