शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

प्रगतिशील कविता

 

प्रगतिशील कविता

प्रगति का सामान्य अर्थ है, आगे बढ़ना। वाद का अर्थ है सिद्धांत या विचार । प्रगतिवाद का अर्थ है— आगे बढ़ने का सिद्धांत । साहित्य अपने स्वभाव से प्रगतिशील होता है, लेकिन यहाँ प्रगतिशीलता का अर्थ एक खास विचारधारा के साथ आगे बढ़ने से है । वह विचारधारा मार्क्सवाद है। प्रगतिशील कविता पर कार्ल मार्क्स के विचारों का प्रभाव था। इस कविता की शुरुआत सन् 1936 ई. से मानी जाती है।

            पहली बार लंदन में सन् 1935 में इंडियन प्रोग्रेसिव राइटर्स एशोशिएन की स्थापना की गई । 10 अप्रैल, सन् 1936 ई. को लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई। इसकी अध्यक्षता हिंदी के लेखक प्रेमचंद ने की। यहाँ पहले-पहल हिंदी साहित्य में प्रगतिशीलता पर विचार हुआ। बाद में रवींद्रनाथ ठाकुर, जवाहर लाल नेहरू और श्रीपाद डांगे भी इसके इसके सभापति बने।

प्रगतिशील कविता की शुरुआत प्रगतिशील लेखक संघ के लखनऊ अधिवेशन के बाद से ही मानी जाती है। इसकी प्रवृत्तियाँ (विशेषताएँ) हैं—

1.      प्रगतिशील कविता प्रगतिशील जीवन मूल्यों की कविता है । यह पुरानी रूढ़ियों को नहीं मानती। यह मार्क्सवादी समाज-दृष्टि और विश्वदृष्टि से प्रभावित कविता है ।

2.      प्रगतिशील कविता में कल्पना की जगह यथार्थ ने ले लिया ।

3.      प्रगतिशील कविता में किसानों और मजदूरों की बात की गई।

4.      प्रगतिशील कविता पूँजीवाद और सामंतवाद का लोगों के विरोध है ।

5.      इस कविता में गरीबों, मजदूरों और निम्नवर्गीय लोगों के हित की बात की गई ।

6.      यहाँ मनुष्य के सहज और सच्चे सौंदर्य की कविताएँ लिखी गई, जैसे— छोटे बच्चे की मुस्कान, दाम्पत्य जीवन की सुंदरता, किसानों और मजदूरों के काम की सुंदरता।

7.      इन कविताओं में वर्तमान व्यवस्था पर व्यंग्य किया गया है।

8.      प्रकृति की सहज सुंदरता का वर्णन किया गया। छायावादी कविता की तरह कल्पना की अधिकता नहीं है।

9.      प्रगतिशील कविता सहज मानवीय प्रेम की कविताएँ लिखी गई हैं। उनका प्रेम एकांतिक न होकर सामाजिक है।

10.  यह कविता समाजवादी देशों का समर्थन करती है।

प्रमुख कवि— नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, त्रिलोचन, गजानन माधव मुक्तिबोध’, शिवमंगल सिंह सुमन आदि।

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

अज्ञेय


अज्ञेय का पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन था । उनके पिता हीरानंद शस्त्री  एक पुरातत्त्ववेत्ता थे । अज्ञेय का जन्म कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) के पुरातत्त्व शिविर में  सन् 1911 ई.  में हुआ था ।

उन्होंने 1929 में विज्ञान में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की । उसके बाद उनके संबंध क्रांतिकारियों से हो गए और वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए । द्वितीय विश्व युद्ध के समय अज्ञेय ब्रीटिश सेना में भर्ती हुए  और पूर्वोत्तर भारत पर जापान की सेना के विरुद्ध मोर्चे पर तैनात रहे ।  उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और जोधपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन भी किया और  आल इंडिया रेडियो से भी जुड़े रहे ।






गुरुवार, 19 नवंबर 2020

महादेवी वर्मा


महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले में हुआ था । उनके जीवन का अधिकांश समय इलाहाबाद में बीता था । वे प्रयाग महिला विद्यापीठ में अध्यापिका थीं। उनका विवाह बचपन में ही हो गया था, लेकिन वे जीवन-भर अविवाहित की तरह रहीं । माहदेवी वर्मा साहित्यकार के साथ-साथ कुशल चित्रकार भी थीं । वे संगीत में भी निपुण थीं । उन्होंने अनेक रचाओं के अनुवाद भी किए हैं ।

महादेवी  वर्मा छायावाद की महत्त्वपूर्ण कवयित्री थीं । उन्होंने छायावाद युग में कविताएँ लिखी हैं ।  प्रकृति के प्रति प्रेम और कल्पना छायावादी कविता की विशेषता है ।  यह विशेषता जयशंकर प्रसाद, निराला और पंत तीनों कवियों में है । तीनों ही प्रकृति की सुंदरता पर मोहित हैं ।  उनका प्रक्रिति से प्रेम कभी-कभी रहस्यवाद तक पहुँच जाता है । वे प्रकृति में ब्रह्म (ईश्वर) का आभास (अनुभव) पाने लगते हैं। इसलिए उनके  प्रकृति–प्रेम की कविताएँ रहस्यवादी हो जाती हैं । यह रहस्यवाद उनकी कविता की एक पहचान है । महादेवी वर्मा की कविता का मुख्य विषय रहस्यवाद है । वे इस प्रकृति में अज्ञात शक्ति (ईश्वर) की कल्पना करती हैं । उनकी कवितओं में प्रकृति की क्रियाओं को उसी का संदेश सुना गया है ।

महादेवी वर्मा ने अप्रत्यक्ष सत्ता से प्रेम की कविताएँ लिखीं । उनका प्रेमी इस दुनिया से दूर कहीं कहीं इस प्रकृति  के उसपार है । उहोंने अपनी कविताओं में इस विरह को ही विषय बनाया । उनकी कविताएँ प्रेम की पीड़ा (दुःख) की कविताएँ हैं । इसलिए उनपर बुद्ध के दुःखवाद प्रभाव माना जाता है । महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीरा कहा गया है ।

महादेवी वर्मा  ने गद्य  में भी रचनाएँ कीं । उनके संस्मरण और रेखाचित्र बहुत प्रसिद्ध  हैं ।  उनके गद्य-लेखन में उनकी स्त्री-चेतना दिखाई पड़ती है । उन्होंने अपने जीवन में भी स्त्री-शिक्षा और स्त्री-शिक्षा के लिए काम किए ।

महादेवी वर्मा को उनके काव्यसंग्रह यामा के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया । यह भारतीय साहित्य का सबसे पुरस्कार है ।