शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

फीचर लेखन

















नयी कविता


(1954 के बाद )

नयी कविता का जन्म प्रयोगवदी कविता के भीतर से हुआ । इसके विकास में दूसरा सप्तक (1951ई.) और तीसरा सप्तक(1959ई.) के कवियों का योगदान रहा है । प्रयोग’(प्रयोगवाद )  की तरह नयी कविता पद का प्रयोग भी अज्ञेय ने किया था । उन्होंने कहा था कि प्रयोगवाद जैसा कोई वाद नहीं है, बल्कि तारसप्तक के कवि नये कवि हैं । इसा अर्थ में अज्ञेय प्रयोगवाद की तरह नयी कविता के भी प्रवर्तक माने जा सकते हैं ।

            डॉ. जगदीश गुप्त और रामस्वरूप चतुर्वेदी ने नयी कविता नाम की पत्रिका का संपादन किया । इस पत्रिका का प्रकशन पहली बार 1954 ई. में हुआ । इस पत्रिका के प्रकाशन को ही नयी कविता आंदोलन की शुरुआत माना जाता है । अतः नयी कविता की शुरुआत सन् 1954 ई. में हुई । नयी कविता के अतिरिक्त अज्ञेय द्वारा संपादित प्रतीक पत्रिका ने भी नयी कविता के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । नयी कविता निकष और प्रतीक नयीकविता आंदोलन से जुड़ी मुख्य पत्रिकाएँ हैं ।

 डॉ. जगदीश गुप्त नयी कविता’ पत्रिका के संपादक के साथ-साथ नयी कविता आंदोलन के एक महत्त्वपूर्ण कवि भी थे। उनके अतिरिक्त सप्तक के कवि गजानन माधव मुक्तिबोध’, भवानीप्रसाद मिश्र, धर्मवीर भारती, श्रीनरेश मेहता, शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय तथा श्रीकांत वर्मा और विजयदेव नारायण साही नयी कविता आंदोलन के महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं ।

            नई कविता में कविता की पहले से आती हुई प्रगतिशील और प्रयोगवादी दोनों धाराएँ एक साथ मिल गईं । इसमें मुक्तिबोध, शमशेर, रघुवीर सहाय जैसे प्रगतिशील कवि और गिरजाकुमार माथुर और धर्मवीर भारती जैसे प्रयोगशील कवि नयी कविता आंदोलन में एकसाथ खड़े दिखाई देते हैं । विजयदेव नारायण साही का लघुमानव के बहाने नयी कविता पर एक बहस शीर्षक निबंध और श्रीकांत वर्मा की पुस्तक नयी कविता की पहचान ने इस आंदोलन का वैचारिक आधार तैयार किया । बाद में मुक्तिबोध की एक साहित्यिक की डायरी ने इस आंदोलन को नये तरीके से देखने की एक दृष्टि दी ।

विशेषताएँ :

1.      नई कविता वाद-मुक्त कविता है । 

2.      नई कविता दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की कविता है । इसलिए इसमें अनिश्चय और संशय की प्रवृत्ति पायी जाती है।

3.        यह मनुष्य की लघुता का काव्य है । यहाँ छायावाद के विराट् मानव और प्रगतिवाद का सामाजिक मनुष्य लघु मानव के रूप में दिखाई देता है ।

4.      इन कविताओं में कहीं व्यक्तिवाद है तो कहीं व्यक्ति और समाज की टकराहट । इन कविताओं पर कामू और सार्त्र के अस्तित्ववाद का प्रभाव है ।

नयी कविता के कवियों ने नये विम्बों और प्रतीकों के प्रयोग पर बल दिया है ।

 


मुक्ति बोध


मुक्तिबोध नई कविता के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं । उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु माना जाता है। इनका जन्म 13 नवंबर सन् 1917 ई. में ग्वालियर में हुआ था ।  इनके पिता पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर थे और उनका स्थानांतरण प्रायः होता रहता था। इसीलिए मुक्तिबोध जी की पढ़ाई में बाधा पड़ती रही। उन्होंने नागपुर के आकाशवाणी केंद्र और वाराणसी के हंस प्रेस में नौकरी की तथा विभिन्न विद्यालयों में अध्यापन भी किया । 1961 में उन्होंने छत्तीसगढ़ के राजनाँद गाँव के दिग्विजय कॉलेज में अध्यापन प्रारंभ किया । ट्यूबूर्कुलर मेनेजाइटिस बीमारी के कारण 11 सितंबर 1964 ई. को दिल्ली में उनका निधन हो गया ।

मुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे। मनुष्य की अस्मिताआत्मसंघर्ष और प्रखर राजनैतिक चेतना से समृद्ध उनकी कविता पहली बार 'तार सप्तकके माध्यम से सामने आईलेकिन उनका कोई स्वतंत्र काव्य-संग्रह उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो पाया। मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा ने उनकी केवल 'एक साहित्यिक की डायरीप्रकाशि‍त की थीजिसका दूसरा संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ से उनकी मृत्यु के दो महीने बाद प्रकाशि‍त हुआ। 'चाँद का मुँह टेढ़ा हैका प्रकाशन 1964 में हुआ । इसी वर्ष नवंबर १९६४ में नागपुर के विश्‍वभारती प्रकाशन ने मुक्तिबोध द्वारा १९६३ में ही तैयार कर दिये गये निबंधों के संकलन नयी कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंधको प्रकाशि‍त किया था। परवर्ती वर्षो में भारतीय ज्ञानपीठ से मुक्तिबोध के अन्य संकलन 'काठ का सपना', तथा 'विपात्र' (लघु उपन्यास) प्रकाशि‍त हुए। पहले कविता संकलन के १५ वर्ष बाद१९८० में उनकी कविताओं का दूसरा संकलन 'भूरी भूरी खाक धूलप्रकाशि‍त हुआ।  

ज़िन्दगी में जो कुछ हैजो भी है 

सहर्ष स्वीकारा है; 

इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है 

वह तुम्हें प्यारा है। 

गरबीली ग़रीबी यहये गंभीर अनुभव सब 

यह विचार-वैभव सब 

दृढ़ता यहभीतर की सरिता यह अभिनव सब 

मौलिक हैमौलिक है 

इसलिए के पल-पल में 

जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है-- 

संवेदन तुम्हारा है !! 

 सहर्ष स्वीकारा है (भूरी-भूरी खाक धूल )