शनिवार, 23 नवंबर 2024

तत्पुरुष समास

 तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas) वह समास है, जिसमें पहला शब्द दूसरे शब्द का विशेषण होता है यानी पहले शब्द का दूसरा शब्द की विशेषता बताता है। इस समास में पहले शब्द और दूसरे शब्द के बीच कोई संबंध होता है, जो नए शब्द के अर्थ को स्पष्ट करता है। तत्पुरुष समास का निर्माण प्रायः किसी वस्तु के स्वामी, कर्ता, स्थान या गुण को दर्शाने के लिए किया जाता है।

तत्पुरुष समास की परिभाषा:

तत्पुरुष समास में दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं, और पहला शब्द दूसरे शब्द की विशेषता बताता है। इसमें पहला शब्द विशेषण और दूसरा शब्द विशेष्य (जिसका विशेषण हो) होता है।

संक्षेप में:

  • पहला शब्द विशेषण होता है, दूसरा शब्द विशेष्य होता है।
  • इस समास का निर्माण मुख्य रूप से किसी व्यक्ति, स्थान, समय या गुण के रूप में होता है।

तत्पुरुष समास के उदाहरण:

  1. राजमहल

    • राज (राजा) + महल (महल)
    • अर्थ: राजा का महल
  2. धरतीपुत्र

    • धरती (धरती) + पुत्र (पुत्र)
    • अर्थ: धरती का पुत्र (यह शब्द सामान्यत: किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है जो भूमि से संबंधित हो या किसान)
  3. रात्रिवेला

    • रात्रि (रात) + वेला (समय)
    • अर्थ: रात का समय
  4. शिवमंदिर

    • शिव (शिव भगवान) + मंदिर (मंदिर)
    • अर्थ: शिव का मंदिर
  5. आधिकारिकपत्र

    • आधिकारिक (आधिकारिक) + पत्र (पत्र)
    • अर्थ: आधिकारिक पत्र (जिसे किसी कार्यालय या संस्थान से जारी किया गया हो)
  6. पुस्तकालय

    • पुस्तक (पुस्तक) + आलय (घर)
    • अर्थ: पुस्तकों का घर (पुस्तकालय)

तत्पुरुष समास के प्रकार:

  1. सम्बोधनात्मक तत्पुरुष समास
    इसमें पहला शब्द दूसरे शब्द को संबोधित करता है।

    • उदाहरण: राजकुमार (राजा का पुत्र)
  2. कर्मात्मक तत्पुरुष समास
    इसमें पहला शब्द किसी क्रिया के फल या परिणाम को व्यक्त करता है।

    • उदाहरण: दूरदर्शन (दूर से देखने का उपकरण)
  3. स्वाम्य तत्पुरुष समास
    इसमें पहला शब्द दूसरे शब्द का स्वामी या मालिक होता है।

    • उदाहरण: गृहस्वामी (घर का मालिक)
  4. संग्रहात्मक तत्पुरुष समास
    इसमें पहले शब्द का मतलब दूसरी चीज़ को एकत्रित या समेटने का होता है।

    • उदाहरण: द्वारपाल (द्वार की रक्षा करने वाला)
  5. संबंधात्मक तत्पुरुष समास
    इसमें पहले शब्द और दूसरे शब्द के बीच संबंध होता है।

    • उदाहरण: विद्यार्थी (विद्या से संबंधित व्यक्ति)

तत्पुरुष समास की विशेषताएँ:

  • इस समास में पहले शब्द का कोई विशेषण होता है, जो दूसरे शब्द को स्पष्ट करता है।
  • यह समास कभी कभी क्रिया के साथ जुड़ता है, जैसे "कर्मधारय समास" में होता है।
  • एक वैयक्तिक समास का निर्माण भी तत्पुरुष समास द्वारा होता है, जब इसमें किसी व्यक्ति का नाम या पहचान जुड़ती है।

निष्कर्ष:

तत्पुरुष समास हिंदी भाषा में एक बहुत ही सामान्य और महत्वपूर्ण समास है, जो किसी वस्तु या व्यक्ति की विशेषता या संबंध को संक्षेप में व्यक्त करता है। इससे भाषा सरल और प्रभावशाली बनती है।

समास

 समास हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसमें दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर एक नया शब्द बनाया जाता है। यह नए शब्द का अर्थ उन सभी शब्दों के अर्थ को संक्षेप में व्यक्त करता है। समास को समझने के लिए यह ज़रूरी है कि हम मुख्य रूप से समास के प्रकारों को जानें।

समास के प्रकार

हिंदी में मुख्य रूप से दस प्रकार के समास होते हैं:


1. द्वंद्व समास

अर्थ: इसमें दो या दो से अधिक शब्दों का मिलन होता है, और दोनों शब्दों का समान महत्व होता है।
उदाहरण:

  • राम-सीता (राम और सीता)
  • धरती-आसमान (धरती और आसमान)

2. तत्पुरुष समास

अर्थ: इसमें पहला शब्द दूसरे शब्द का विशेषण होता है, यानी दूसरा शब्द पहले शब्द की विशेषता बताता है।
उदाहरण:

  • राजमहल (राजा का महल)
  • भूतपूर्व (पूर्व में जो था)

3. बहुव्रीहि समास

अर्थ: इसमें ऐसा शब्द बनता है जो दो या दो से अधिक शब्दों का मिलन होता है, लेकिन नए शब्द का अर्थ उन शब्दों से अलग होता है।
उदाहरण:

  • नीलकंठ (नीला कंठ वाला, एक पक्षी का नाम)
  • दूरदर्शन (दूर से दिखाने वाली चीज़)

4. विग्रह समास

अर्थ: इसमें एक शब्द दूसरे शब्द से अलग होकर अपना पूर्ण रूप बताता है।
उदाहरण:

  • पुस्तकालय = पुस्तक + आलय (पुस्तकों का घर)
  • सूर्यास्त = सूर्य + अस्त (सूर्य का अस्त होना)

5. अवयव समास

अर्थ: इसमें मुख्य रूप से किसी पदार्थ के अंग, भाग या अवयव को जोड़ा जाता है।
उदाहरण:

  • हाथीपांव (हाथी के पांव)
  • बड़े-बड़े (बड़े के साथ छोटा भी जोड़ा गया)

6. कर्मधारय समास

अर्थ: इसमें एक शब्द किसी चीज़ के गुण या प्रकार का द्योतक होता है और दूसरा शब्द उसका नाम बताता है।
उदाहरण:

  • चंद्रमुखी (चंद्र जैसे मुख वाला)
  • हाथी जैसा (हाथी के समान)

7. सम्प्रदान समास

अर्थ: इस समास में क्रिया के साथ किसी स्थान, व्यक्ति या वस्तु का संबोधन होता है।
उदाहरण:

  • राजदूत (राजा के दूत)
  • मित्ररूप (मित्र के समान)

8. कर्म समास

अर्थ: इस समास में किसी क्रिया का उद्देश्य, कारण या परिणाम बतलाया जाता है।
उदाहरण:

  • अध्यापक (अध्यान करने वाला)
  • वास्तुकार (वास्तु का निर्माण करने वाला)

9. तद्धित समास

अर्थ: यह समास तब बनता है जब शब्द के साथ कुछ विशेष उपसर्ग जोड़कर उसे नया अर्थ दिया जाता है।
उदाहरण:

  • राजकुमार (राजा का कुमार/बेटा)
  • स्वप्नदृष्टा (स्वप्न देखने वाला)

10. अन्य समास

अर्थ: इनमें अन्य प्रकार के समास होते हैं जिनका रूप और उपयोग अलग होता है।
उदाहरण:

  • दूरदर्शन (दूर से दिखाने वाली चीज़)
 




लागेउ माँह परै अब पाला। बिरह काल भएड जड़काला।

पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँँ।।

आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।

एहि मास उपजै रस मूलू। तूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू।

नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।

टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। बिरह पवन होइ मारैं झोला।

केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा।

तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई तन तिनुवर भा डोल।

तेहि पर बिरह जराइ कै चहै उड़ावा झोल॥





यह एक अवधी भाषा में लिखी गई सुंदर कविता है, जिसमें विरह की पीड़ा और जाड़े (सर्दी) के मौसम का गहरा और भावपूर्ण वर्णन किया गया है। इसमें विरहिन स्त्री अपने प्रियतम के बिना अपनी दशा को प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त कर रही है। आइए इसे थोड़ा विश्लेषण करें:



प्रमुख भाव:

विरह की पीड़ा:



"लागेउ माँह परै अब पाला। बिरह काल भएड जड़काला।"

यहाँ पाला (ठंड) और विरह को समान रूप में रखा गया है, जो शरीर और मन दोनों को जकड़ रहा है।

शारीरिक और मानसिक अवस्था:



"पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँँ।"

पहले शरीर को रुई से ढकने पर राहत मिलती थी, लेकिन अब यह ठंड (विरह) बढ़कर हृदय तक पहुँच गई है।

प्रकृति और प्रेम का संबंध:



"आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।"

केवल सूर्य के तपने (प्रेमी के आने) से ही इस ठंड से राहत संभव है।

रस और सौंदर्य का क्षय:



"एहि मास उपजै रस मूलू। तूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू।"

प्रेमी के बिना जीवन के रस (प्रेम) का ह्रास हो गया है।

आंसुओं और प्रकृति का चित्रण:



"नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।"

आँसुओं को ठंडे पानी की बूँदों के समान बताया गया है, जो और भी अधिक सर्दी का अहसास करा रही हैं।

कविता का संदेश:

यह कविता विरहिन के अंतर्मन की गहराई को बड़ी कोमलता और सजीवता के साथ दर्शाती है। प्रियतम के बिना हर सुख-दुख व्यर्थ लगता है और जीवन केवल शून्य रह जाता है।



व्याख्या : 



यह कविता अवधी में लिखी गई है और विरह (प्रेम-वियोग) के दर्द को बहुत ही सजीव और प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त करती है। इसमें सर्दी का वर्णन केवल मौसम का चित्रण नहीं है, बल्कि यह प्रेमी के बिना नायिका के अंतर्मन की ठंडक और खालीपन को दर्शाने का माध्यम है। आइए इसे विस्तार से व्याख्या करें:



पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या

"लागेउ माँह परै अब पाला। बिरह काल भएड जड़काला।"



सर्दियों का मौसम है, और पाला (फ्रॉस्ट) हर तरफ छाया हुआ है। इस सर्दी को नायिका अपने विरह की पीड़ा के रूप में महसूस करती है।

"बिरह काल" यहाँ विरह को एक घातक समय के रूप में प्रस्तुत करता है, जो मन और शरीर को जकड़ लेता है।

"पहल पहल तन रुई जो झाँपै। हहलि हहलि अधिकौ हिय काँँ।"



शुरुआत में नायिका अपने शरीर को रुई (कपड़े) से ढकने की कोशिश करती है, लेकिन यह ठंड (विरह) इतना गहरा है कि यह हृदय तक पहुंच जाता है।

ठंड केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक और भावनात्मक भी है।

"आई सूर होइ तपु रे नाहाँ। तेहि बिनु जाड़ न छूटै माहाँ।"



नायिका कहती है कि यह सर्दी तभी खत्म होगी जब "सूर" (सूरज) यानी उसका प्रिय वापस आएगा।

यहाँ सूरज प्रेमी का प्रतीक है, जिसकी उपस्थिति जीवन को गर्मी और राहत दे सकती है।

"एहि मास उपजै रस मूलू। तूँ सो भँवर मोर जोबन फूलू।"



इस ठंड के मौसम में जीवन का रस और जड़ें (मूल) सूख रही हैं।

नायिका अपने प्रेम को "भंवरा" (मधुमक्खी) और खुद को "फूल" के रूप में देखती है, जो विरह के कारण मुरझा रहा है।

"नैन चुवहिं जस माँहुट नीरू। तेहि जल अंग लाग सर चीरू।"



नायिका के आँसू बर्फीले पानी की तरह टपकते हैं, जो शरीर को और अधिक ठंडा कर देते हैं।

आँसुओं की यह ठंड विरह की जलन को और बढ़ा देती है।

"टूटहिं बुंद परहिं जस ओला। बिरह पवन होइ मारैं झोला।"



आँसुओं की बूँदें बर्फ की ओलों के समान महसूस होती हैं।

विरह की पीड़ा हवा के थपेड़ों जैसी लगती है, जो और अधिक तकलीफ देती है।

"केहिक सिंगार को पहिर पटोरा। गियँ नहिं हार रही होइ डोरा।"



नायिका पूछती है कि किसके लिए वह सिंगार करे या गहने पहने?

उसके प्रिय के बिना सिंगार और गहनों का कोई महत्व नहीं।

"तुम्ह बिनु कंता धनि हरुई तन तिनुवर भा डोल।"



नायिका कहती है कि बिना अपने प्रिय के उसका शरीर कमजोर हो गया है, मानो बांस के समान हिल रहा हो।

"तेहि पर बिरह जराइ कै चहै उड़ावा झोल।"



विरह की आग इस कमजोर शरीर को जला रही है और मानो सब कुछ खत्म कर देना चाहती है।

सारांश

यह कविता सर्दियों के कठोर मौसम के माध्यम से विरह और प्रेम-वियोग की पीड़ा को व्यक्त करती है। नायिका के लिए हर चीज़ ठंडी, सूनी और बेरंग हो गई है। प्रियतम का अभाव न केवल भावनात्मक बल्कि शारीरिक रूप से भी उसे कमजोर कर रहा है।



कविता में प्रकृति के सुंदर और सजीव प्रतीकों का उपयोग इसे और भी गहन और हृदयस्पर्शी बनाता है। यह प्रेम और विरह के अनुभव को सार्वभौमिक और कालातीत रूप में प्रस्तुत करती है।