मध्यकाल (सन् 1318 ई. से 1643 ई.) और भक्ति काल
मध्यकाल का परिचय:
मध्यकाल, आदिकाल और आधुनिक काल के बीच का कालखंड है। इसे दो भागों में विभाजित किया गया है:
- पूर्वमध्यकाल (जिसे भक्ति काल भी कहा जाता है)
- उत्तरमध्यकाल
भक्ति काल, विशेष रूप से भारतीय साहित्य और संस्कृति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण समय था, जिसमें भक्ति-भावना को प्रमुख रूप से प्रसारित किया गया। यह काल विशेष रूप से ईश्वर के प्रति प्रेम, समर्पण और भक्ति की भावना से ओत-प्रोत था।
भक्ति की शुरुआत और उसका फैलाव:
भक्ति की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई थी, जहाँ तमिल आलवार संतों ने भगवान विष्णु के प्रति भक्ति को प्रमुखता दी। इन संतों की भक्ति का प्रभाव उत्तर भारत में रामानंद के माध्यम से पड़ा, जिन्होंने इस भक्ति आंदोलन को उत्तर भारत में फैलाया। रामानंद का संबंध आलवार संतों से था, और उनका कार्य भारतीय उपमहाद्वीप में भक्ति के प्रसार के रूप में मील का पत्थर साबित हुआ।
भक्ति काव्य की विशेषताएँ:
भक्ति काव्य का मुख्य उद्देश्य ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति को व्यक्त करना था। इस काल में कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से भक्ति और धार्मिकता को अपने समय की सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना से जोड़ा। भक्ति काव्य में देशी भाषाओं की महत्ता बढ़ी, और हिंदी के विभिन्न रूपों में कविता लिखी गई।
भक्ति के प्रकार:
- सगुण भक्ति: इसमें ईश्वर को साकार रूप में पूजा जाता है। इस भक्ति में ईश्वर के रूप और गुणों का वर्णन किया जाता है।
- निर्गुण भक्ति: इसमें ईश्वर को निराकार रूप में पूजा जाता है, जो किसी रूप और आकार से परे होते हैं।
भक्ति के प्रकार और उनके क्षेत्र:
- कृष्ण भक्ति: कृष्ण भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति पर आधारित काव्य रचनाएँ।
- राम भक्ति: राम के प्रति प्रेम और भक्ति का प्रतिविम्ब।
- ज्ञानाश्रयी भक्ति: यह भक्ति संत कवियों द्वारा व्यक्त की गई, जिसमें ज्ञान की प्राप्ति और आत्म-बोध पर जोर दिया गया।
- प्रेमाश्रयी भक्ति: इसमें प्रेम की भावना को परमेश्वर से जोड़ा गया, जैसे सूफी कवियों द्वारा।
भक्ति काल का सामाजिक प्रभाव:
भक्ति काल के काव्य में भक्ति के साथ-साथ सामाजिक समानता और एकता पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। विशेष रूप से, समाज के विभिन्न वर्गों, जातियों और धर्मों के बीच समानता और भाईचारे का संदेश दिया गया। इस समय में कविता, भक्ति और संगीत का मिलाजुला रूप सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक विकास में सहायक साबित हुआ।
भक्ति काल को हिंदी कविता का स्वर्ण युग कहा जाता है क्योंकि इस दौरान हिंदी साहित्य में एक नया आयाम और उत्थान हुआ। संत कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल भक्ति की अपार शक्ति को प्रदर्शित किया, बल्कि समाज में व्याप्त भेदभाव और ऊँच-नीच के भेद को भी चुनौती दी।
निष्कर्ष:
भक्ति काल ने भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दी। इस काल में कवियों ने न केवल ईश्वर के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को व्यक्त किया, बल्कि समाज की वास्तविक समस्याओं, भेदभाव और असमानताओं के खिलाफ भी आवाज़ उठाई। भक्ति काव्य ने धार्मिक और सांस्कृतिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे हिंदी साहित्य के स्वर्ण युग के रूप में याद किया जाता है।