शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

फीचर लेखन

फीचर लेखन (Feature Writing) एक प्रकार का पत्रकारिता लेखन होता है, जिसका उद्देश्य किसी विशेष विषय, घटना, व्यक्ति या सामाजिक मुद्दे को विस्तार से और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करना होता है। फीचर लेखन का मुख्य उद्देश्य पाठक को न केवल जानकारी देना, बल्कि उस विषय से जुड़ी भावनाओं, विचारों और दृष्टिकोणों से भी परिचित कराना होता है। फीचर लेखन में तात्कालिकता की बजाय विषय की गहराई और विस्तृत समझ पर ध्यान दिया जाता है।

फीचर लेखन की विशेषताएँ:

  1. विषय का चयन: फीचर लेख में ऐसे विषय को चुना जाता है, जो पाठकों के लिए दिलचस्प, विचारणीय या संवेदनशील हो। ये विषय समाज, राजनीति, विज्ञान, कला, साहित्य, पर्यावरण, जीवनशैली आदि से संबंधित हो सकते हैं।

  2. विस्तृत शोध: फीचर लेखन में गहन शोध की आवश्यकता होती है। लेखक को अपने विषय के सभी पहलुओं पर विचार करके और विभिन्न स्रोतों से जानकारी एकत्र करके लेख तैयार करना होता है।

  3. कहानी की शैली: फीचर लेखन में लिखने की शैली पत्रकारिता के समाचार लेखन से अलग होती है। इसमें लेखक आमतौर पर कहानी की शैली का उपयोग करता है, जिससे पाठक का ध्यान बनाए रखा जा सके। यह अधिक नाटकीय और रोचक हो सकता है।

  4. वैयक्तिक दृष्टिकोण: फीचर लेख में लेखक अपनी राय और दृष्टिकोण को भी प्रस्तुत करता है, जिससे लेख में एक व्यक्तिगत स्पर्श और गहराई आती है। इसमें लेखक का अनुभव, विचार और विश्लेषण महत्वपूर्ण होते हैं।

  5. साक्षात्कार: फीचर लेखों में अक्सर व्यक्तियों के साक्षात्कार (interviews) शामिल होते हैं, जो लेख को और अधिक विश्वसनीय और प्रमाणिक बनाते हैं। साक्षात्कार से लेखक को विषय पर नया दृष्टिकोण और जानकारी मिलती है।

  6. नarrative technique: इसमें लेखक विषय को कहानी के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक को एक रोमांचक और दिलचस्प अनुभव होता है। लेख को सजीव बनाने के लिए रचनात्मकता का उपयोग किया जाता है।

  7. समाजिक उद्देश्य: फीचर लेखों का उद्देश्य पाठकों को केवल सूचना देना नहीं होता, बल्कि सामाजिक बदलाव, चेतना, और सोच में विस्तार करना भी होता है। यह समाज के विभिन्न पहलुओं पर विचार करता है और उन पर प्रकाश डालता है।

फीचर लेखन की संरचना:

फीचर लेख की सामान्य संरचना में निम्नलिखित हिस्से होते हैं:

  1. हेडलाइन (Headline): यह लेख का शीर्षक होता है, जो पाठक का ध्यान आकर्षित करने के लिए रचनात्मक और आकर्षक होना चाहिए। इसे संक्षिप्त और प्रभावशाली बनाना चाहिए।

  2. लेड (Lead): यह लेख का प्रारंभिक हिस्सा होता है, जो पाठक को लेख में रुचि लेने के लिए प्रेरित करता है। यहां पर लेख का मुख्य विषय या मुद्दा प्रस्तुत किया जाता है।

  3. मुख्य भाग (Body): यह लेख का सबसे बड़ा हिस्सा होता है, जिसमें लेखक विषय के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से प्रस्तुत करता है। इसमें तथ्य, आंकड़े, साक्षात्कार, उद्धरण और विश्लेषण शामिल होते हैं।

  4. समाप्ति (Conclusion): लेख का समापन भाग होता है, जिसमें लेखक विषय का सारांश प्रस्तुत करता है और अंतिम विचार देता है। इसे प्रभावशाली और विचारणीय बनाना चाहिए, जिससे पाठक के मन में एक स्थायी छाप छोड़ सके।

फीचर लेखन के प्रकार:

  1. समाजिक फीचर: यह लेख समाज के किसी विशेष मुद्दे या समस्या पर केंद्रित होते हैं, जैसे गरीबी, शिक्षा, महिला अधिकार, जातिवाद आदि।

  2. कला और संस्कृति: इसमें कला, संगीत, साहित्य, नृत्य और संस्कृति से संबंधित विषयों पर लेख लिखे जाते हैं।

  3. यात्रा फीचर: इस प्रकार के फीचर लेख में किसी यात्रा के अनुभव, स्थलों की विशेषताएँ, संस्कृति और जीवनशैली का विवरण दिया जाता है।

  4. व्यक्तित्व फीचर: इसमें किसी प्रसिद्ध व्यक्ति, कलाकार, लेखक या समाजसेवी के जीवन और कार्यों का वर्णन किया जाता है। इसमें साक्षात्कार का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है।

  5. प्राकृतिक या पर्यावरणीय फीचर: इसमें पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, वन्य जीवन, प्राकृतिक आपदाएँ आदि से संबंधित लेख होते हैं।

  6. आर्थिक फीचर: इसमें किसी आर्थिक मुद्दे, व्यापार, उद्योग, निवेश, कर प्रणाली आदि पर लेख लिखे जाते हैं।

  7. स्वास्थ्य और जीवनशैली: इसमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, आहार, फिटनेस, जीवनशैली आदि से संबंधित लेख होते हैं।

फीचर लेखन के टिप्स:

  1. विवरणात्मक शैली अपनाएँ: फीचर लेख में, लिखते समय विवरणात्मक शैली अपनाना आवश्यक है। इससे पाठक को विषय के प्रति आकर्षण और गहराई का एहसास होता है।

  2. साक्षात्कार और उद्धरण का उपयोग करें: विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए साक्षात्कार और उद्धरण का उपयोग करें। यह लेख को प्रामाणिकता और विचारशीलता प्रदान करता है।

  3. रचनात्मकता का इस्तेमाल करें: फीचर लेखों में रचनात्मकता का प्रयोग जरूरी है। यह लेख को रोचक, दिलचस्प और पठनीय बनाता है।

  4. भावनाओं और विचारों को समाहित करें: फीचर लेखन में व्यक्ति की भावनाओं, विचारों और संवेदनाओं को व्यक्त करना महत्वपूर्ण होता है। इसे प्रभावी रूप से व्यक्त करने के लिए सही शब्दों और दृष्टिकोण का चयन करें।

  5. पाठक को सोचने पर मजबूर करें: फीचर लेख का उद्देश्य पाठक के मन में सवाल खड़ा करना और उसे सोचने पर मजबूर करना होता है। लेख को इस तरह से समाप्त करें कि पाठक पर स्थायी प्रभाव पड़े।

निष्कर्ष:

फीचर लेखन पत्रकारिता का एक आकर्षक और महत्वपूर्ण रूप है। इसमें लेखक को अपने विचारों और दृष्टिकोण को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अवसर मिलता है। यह लेखन न केवल जानकारी देने का कार्य करता है, बल्कि पाठक के मन में गहरे प्रभाव छोड़ने और समाज में जागरूकता फैलाने का भी कार्य करता है।










नयी कविता

नयी कविता का जन्म प्रयोगवादी कविता से हुआ, और इस आंदोलन में अज्ञेय का प्रमुख योगदान रहा। अज्ञेय ने स्वयं 'नयी कविता' पद का प्रयोग किया था और इसे प्रयोगवाद से अलग बताया था। उनका मानना था कि तारसप्तक के कवि ही 'नये कवि' हैं, जिनके माध्यम से नयी कविता का प्रसार हुआ।

1951 और 1959 में प्रकाशित सप्तक और तारसप्तक में काव्य रचनाओं ने नयी कविता के लिए मार्ग प्रशस्त किया। इसके विकास में डॉ. जगदीश गुप्त और रामस्वरूप चतुर्वेदी द्वारा संपादित 'नयी कविता' पत्रिका का प्रकाशन एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसे 1954 में शुरू किया गया। इस पत्रिका के प्रकाशन को नयी कविता आंदोलन की शुरुआत माना जाता है। इसके अलावा, अज्ञेय द्वारा संपादित 'प्रतीक' पत्रिका का भी नयी कविता के विकास में अहम योगदान था।

नयी कविता में कवियों का दृष्टिकोण बहु-आयामी था। इसमें प्रगतिशील और प्रयोगशील दोनों धाराओं का समावेश हुआ, जैसे कि मुक्तिबोध, शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती आदि ने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से इसे और आगे बढ़ाया।

नयी कविता की कुछ मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  1. वाद-मुक्त कविता: नयी कविता किसी विशेष वाद या विचारधारा से बंधी नहीं है।
  2. अनिश्चितता और संशय की प्रवृत्ति: यह कविता दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की सामाजिक और मानसिक स्थिति का प्रतिबिंब है।
  3. मानव की लघुता: इसमें मानव को छोटे और व्यक्तिगत रूप में दर्शाया गया है, न कि विराट् या आदर्श रूप में।
  4. व्यक्तिवाद और समाज की टकराहट: यहाँ व्यक्तिवाद की प्रवृत्ति देखने को मिलती है, साथ ही व्यक्ति और समाज के बीच संघर्ष भी दिखाई देता है।
  5. नये विम्ब और प्रतीक: कवियों ने नये प्रकार के विम्बों और प्रतीकों का प्रयोग किया है, जो उनके दृष्टिकोण को और अधिक स्पष्ट करते हैं।

इस तरह, नयी कविता का विकास प्रयोगवादी और प्रगतिवादी काव्य धारा के मिश्रण के रूप में हुआ और इसने भारतीय कविता को एक नयी दिशा दी।

मुक्तिबोध: नई कविता के अग्रदूत और आत्मसंघर्ष के कवि


गजानन माधव मुक्तिबोध हिन्दी साहित्य के उन अद्वितीय रचनाकारों में से हैं, जिन्होंने कविता, निबंध और आलोचना के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए। मुक्तिबोध का जन्म 13 नवंबर 1917 को ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। उनके पिता पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर थे, जिनके लगातार स्थानांतरण के कारण मुक्तिबोध की शिक्षा-दीक्षा नियमित नहीं हो सकी। यह अनियमितता उनके जीवन में संघर्ष का एक बड़ा कारण बनी, जो उनके साहित्य में भी परिलक्षित होती है।

जीवन और शिक्षा का संघर्ष

मुक्तिबोध का बचपन और शिक्षा निरंतर संघर्षों के बीच गुजरी। शिक्षा के दौरान उनके पिता की कठोरता और आर्थिक सीमाएँ उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालती हैं। उनकी पढ़ाई कई बार बाधित हुई, लेकिन उनके आत्म-अध्ययन और साहित्यिक रुझान ने उन्हें एक अद्वितीय रचनाकार बना दिया। उन्होंने नागपुर आकाशवाणी और वाराणसी के हंस प्रेस में नौकरी की और अध्यापन कार्य भी किया।

1961 में मुक्तिबोध ने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव स्थित दिग्विजय कॉलेज में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया। हालांकि, उनका स्वास्थ्य हमेशा कमजोर रहा। अंततः ट्यूबरकुलर मेनिनजाइटिस बीमारी के कारण 11 सितंबर 1964 को दिल्ली में उनका निधन हो गया।

साहित्यिक योगदान

मुक्तिबोध को नई कविता के महत्त्वपूर्ण कवि माना जाता है। उन्होंने साहित्य में आत्मसंघर्ष, अस्मिता और राजनीतिक चेतना के विषयों को प्रमुखता दी। उनकी रचनाएँ "तारसप्तक" से पहली बार साहित्य जगत में सामने आईं। हालांकि, उनके जीवनकाल में उनका कोई स्वतंत्र काव्य संग्रह प्रकाशित नहीं हो सका। उनकी कविताएँ और अन्य रचनाएँ उनके निधन के बाद संग्रहित और प्रकाशित की गईं।

प्रमुख कृतियाँ

  1. काव्य संग्रह

    • चाँद का मुँह टेढ़ा है (1964)
    • भूरी-भूरी खाक धूल (1980)
  2. निबंध संग्रह

    • नयी कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध
    • एक साहित्यिक की डायरी
  3. अन्य रचनाएँ

    • काठ का सपना
    • विपात्र (लघु उपन्यास)

चाँद का मुँह टेढ़ा है

मुक्तिबोध का पहला कविता संग्रह चाँद का मुँह टेढ़ा है उनकी मृत्यु के बाद 1964 में प्रकाशित हुआ। यह संग्रह उनकी कविताओं की गहराई, सामाजिक यथार्थ और व्यक्तिगत संघर्ष का आईना है। इसमें उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताएँ, जैसे अँधेरे में और भूल गलती शामिल हैं।

भूरी-भूरी खाक धूल

1980 में प्रकाशित यह काव्य संग्रह उनकी मृत्यु के बाद उनकी कविताओं के दूसरे संकलन के रूप में सामने आया। इसमें उनकी संवेदनशीलता और आत्मान्वेषण की प्रक्रिया को गहराई से दर्शाया गया है। उनकी कविता सहर्ष स्वीकारा है इस संग्रह का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है:

"ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।"

यह कविता मानवीय संबंधों और जीवन के संघर्षों को स्वीकारने की भावना को व्यक्त करती है।

मुक्तिबोध की काव्य विशेषताएँ

1. आत्मसंघर्ष का स्वर

मुक्तिबोध की कविताओं में आत्मसंघर्ष और द्वंद्व की प्रधानता है। वे अपने भीतर के अंतर्विरोधों और बाहरी समाज के संघर्षों को अपनी कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। उनकी कविता अँधेरे में इस आत्मसंघर्ष का जीवंत उदाहरण है।

2. राजनीतिक चेतना

मुक्तिबोध की कविताएँ सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से जागरूक हैं। उनकी कविताओं में सत्ता, समाज, और व्यवस्था के प्रति तीखी आलोचना देखने को मिलती है। वे प्रगतिशील विचारधारा के समर्थक थे और पूँजीवाद, सामंतवाद तथा शोषण के खिलाफ लिखते थे।

3. सामाजिक यथार्थ और मानवता

उनकी कविताओं में समाज के दबे-कुचले वर्गों के प्रति सहानुभूति झलकती है। वे समाज में हो रहे अन्याय और असमानता के खिलाफ खड़े होते हैं।

4. भाषा और शैली

मुक्तिबोध की भाषा में दार्शनिकता और भावुकता का अद्भुत मेल है। उनकी कविताएँ गहरी सोच और संवेदनाओं का प्रतीक हैं। उन्होंने प्रतीक, बिंब और व्यंग्य का कुशल प्रयोग किया है।

5. नयी कविता के साथ सेतुबंध

मुक्तिबोध प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच एक सेतु हैं। उन्होंने प्रगतिशील विचारधारा के साथ-साथ नई कविता की व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और दार्शनिकता को जोड़ा।

महत्त्व और प्रभाव

मुक्तिबोध के साहित्य का भारतीय साहित्य पर गहरा प्रभाव है। उनकी कविताएँ और निबंध आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने साहित्य को केवल सौंदर्यबोध का माध्यम नहीं माना, बल्कि इसे समाज में परिवर्तन लाने का उपकरण समझा। उनकी रचनाएँ पाठकों को आत्मनिरीक्षण और समाज के प्रति जागरूकता की प्रेरणा देती हैं।

निष्कर्ष

मुक्तिबोध नई कविता के अग्रदूत और सामाजिक परिवर्तन के प्रतीक थे। उनकी कविताएँ आत्मसंघर्ष, समाज के यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं की अनूठी अभिव्यक्ति हैं। उन्होंने साहित्य के माध्यम से न केवल व्यक्तिगत पीड़ा और संघर्ष को व्यक्त किया, बल्कि समाज के वंचित वर्गों की आवाज़ को भी बुलंद किया। उनके साहित्य में जीवन की जटिलताओं और गहराइयों को समझने का एक अद्वितीय दृष्टिकोण मिलता है, जो उन्हें हिन्दी साहित्य के इतिहास में अमर बनाता है।